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भटकती नींद/कविता/पल्लवी पाण्डेय

किसी रात
जब नींद भटकने लगती है
अनिद्रा के जंगल में
आंखों से कोसों दूर
अंधेरी घनी रात में
टिमटिमाते जगनुओं की जलती बुझती रोशनी के साथ
उस रात
उभरते हैं अतीत के दुःख –सुख
कई किस्से बचपन के
कुछ धुंधले चेहरे कुछ काली परछाइयां
परीक्षा का कोई कठिन सवाल
जिसका उत्तर अब पता हो
आम की बगिया पुराना पाहीघर
पुराना चोट जिसका अब भी बचा हो निशान
कई अधूरे दिन
तमाम किस्से कहानियों भरी छत पर बिताई रात
दीदी द्वारा सिखाए पहाड़े
भूले तो नहीं
दोहरा लूं 19का पहाड़ा ,
मम्मी ने परोस दिया खाना
दाल –भात ,चटनी ,अचार
जिह्वा चख लेती है
अतीत की थाली से वही पुराना स्वाद
इन सब के बीच आता है एक इतवार
अरे –अरे
छीन के जा रहा
पिता की छांव ..
आंसू भरे आंखों से सब धुंधला हो गया
पलकें झपकी और सवेरा हो गया
नींद !
तुम कल रात कहीं न जाना
तुम्हारे न आने से अतीत का दुःख गहरा हो गया …

लेखक

  • पल्लवी पाण्डेय सहायक आचार्य बीडीएम गर्ल्स डिग्री कॉलेज शिकोहाबाद फिरोजाबाद परारंभिक शिक्षा – वाराणसी उच्च शिक्षा : बी ए , एम ए , पीएचडी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) एसोसिएट रिसोर्स पर्सन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन पौड़ी गढ़वाल प्रकाशित रचनाएं –सृजन की ज़मीन (काव्य संग्रह)

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