तुम्हारे जानें के बाद
मैंने पीड़ा के सागर में गोते लगाकर कुछ शब्द चुने ,
स्मृतियों के घनी झाड़ियों से खोजी तुम्हारी यादों को सहेजने वाली औषधियां ,
कई रातें जाग –जागकर
टिमटिमाते तारों में लगाया पता तुम्हारे सितारे का ,
घंटों बैठ घाट किनारे निहारती रही मणिकर्णिका से उठने वाली गंगा की लहरों को
वही गंगा जिसमें मिले हो तुम
हर बार मां के सूने माथे को देख
हृदय से उठते हूक में बहे असंख्य शब्द– भाव ,
तब
कुछ शब्द जुड़कर मेरी कविता में आ जाते हैं
जितना याद करते हैं हम तुम्हें
उसका एक हिस्सा ही लिख पाते हैं ,
फिर भला
किसी मंच से कैसे पढ़ दूं
तुम पर लिखी कविताएं,
उन्हें पढ़ते वक्त मेरी अंतरात्मा यकीनन
खो जाएगी पीड़ा के सागर ,स्मृतियों के जंगल ,तारों वाले आकाश या मां के सूने चेहरे में ,
रूंध जायेगा गला
और भर जायेंगी मेरी आंखे
हां!
मैं नहीं पढ़ सकती हूं तुम पर लिखी कविता
किसी मंच से ,