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मेले में बच्चे/कविता/पल्लवी पाण्डेय

मेले में घूमते हुए मैंने देखा दुनिया के सबसे अमीर लोगों का चेहरा कुछ ने पकड़ी थी अपने बच्चों की उंगलियां कुछ कंधों पर सवार थे दुनिया के भाग्यशाली बच्चे समय और अत्यधिक श्रम बेवक्त बूढ़े लगते कुछ चेहरों के साथ चल रहे थे बढ़ते हुए बच्चे मेले में बिकती हर चीज को खरीदने , […]

रेहन पर खुशियाँ/कविता/पल्लवी पाण्डेय

  अचानक छूट जाता है मेरे हाथों से तुम्हारा हाथ सो जाते हो तुम घोर निद्रा में अचानक ही रुक जाती है तुम्हारी सांस एकदम से हमेशा के लिए मां चीख पड़ती है बहुत जोर से अचानक मैं दीदी को बुला रही फ़ोन पर चीख जगा रही तुम्हें पूरी ताकत के साथ पर मैं जगा […]

मेरी कविता में तुम/कविता/पल्लवी पाण्डेय

  मेरी कविता में जब तुम आते है , अक्षरों में आ जाती है नमी शब्दों में भर जाती है भावुकता , और पंक्तियों के मध्य प्रवाहित होने लगता है अतीत , जब भी मैं तुम पर लिखती हूं कोई कविता किसी अंजान राह राह पर अकेले जाते दिखती है इस लम्बी परछाई .. टेबल […]

भटकती नींद/कविता/पल्लवी पाण्डेय

किसी रात जब नींद भटकने लगती है अनिद्रा के जंगल में आंखों से कोसों दूर अंधेरी घनी रात में टिमटिमाते जगनुओं की जलती बुझती रोशनी के साथ उस रात उभरते हैं अतीत के दुःख –सुख कई किस्से बचपन के कुछ धुंधले चेहरे कुछ काली परछाइयां परीक्षा का कोई कठिन सवाल जिसका उत्तर अब पता हो […]

तुम पर लिखी कविता/कविता/पल्लवी पाण्डेय

  तुम्हारे जानें के बाद मैंने पीड़ा के सागर में गोते लगाकर कुछ शब्द चुने , स्मृतियों के घनी झाड़ियों से खोजी तुम्हारी यादों को सहेजने वाली औषधियां , कई रातें जाग –जागकर टिमटिमाते तारों में लगाया पता तुम्हारे सितारे का , घंटों बैठ घाट किनारे निहारती रही मणिकर्णिका से उठने वाली गंगा की लहरों […]

सफ़ेद सलवार/कविता/पल्लवी पाण्डेय

सफेद सूट सलवार पहन स्कूल ,कॉलेज जाती लडकियां महीने के चार –पांच दिन कितनी ही आशंकाओं से घिरी होती है पीरियड का दर्द सहते हुए भी हर वक्त एक चिंता दाग के लग जाने का , और वह दाग , किसी को दिख जाने का। कितना कठिन है उन दिनों निर्धारित सफेद परिधान पहनना घर […]

रिश्ते का मीठा छायादार वृक्ष/कविता/पल्लवी पाण्डेय

  बहुत लगन से बोया है मैंने हमारे रिश्ते का नन्हा बीज भरोसे की ज़मीन में । समय की खाद , सुख के दिनों की रोशनी और उदासियां भरे तपते दिनों में साथ होने की मीठी फुहार हमारे रिश्ते के नन्हें दरख़्त को एक दिन बना देगी जरूर घना छायादार वृक्ष .. जिसके मीठे फल […]

मेरी कविता/कविता/पल्लवी पाण्डेय

मेरी कविता तुम तब क्यों आती हो जब मैं काट रही होती हूं आलू , प्याज़, टमाटर छौंकती हूं सब्जियां भूनती हूं मसालें दिमाग लगा होता है स्वादानुसार नमक की ओर उसी दौरान क्यों आ जाती हो इतने नए बिंबों को समेटे हुए कड़ाही में उबलती सब्जी के साथ पक जाते हैं शब्द तुम्हारे , […]