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ठाठ है फ़क़ीरी अपना/गीत/गोपालदास नीरज

गली-गली सपने बेचें, बाँटें सितारे
करें ख़ाली हाथ सौदा, साँझ-सकारे
ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।।

कोई नहीं मंज़िल अपनी
कोई ना ठिकाना
प्यार-भरी आँखों में है
अपना आशियाना
धरम-करम कोई नहीं
हमें बाँध पाये
अपने गाँव में भी रहे
बनके हम पराये
बन्धनों से नहीं, हम तो बंधते क़सम से
ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।।

वेद न कुरान बाँचे
ली न ज्ञान दीक्षा
सीखी नहीं भाषा कोई
दी नहीं परीक्षा,
दर्द रहा शिक्षक अपना
दुनिया पाठशाला
दुखों की किताब जिसमें
आँसू वर्ण-माला
लिखना तुम कहानी मेरी दिल की क़लम से
ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।।

हर तरह के फूल हमने
माला में पिरोये
ख़ुद को देखा हँसी आई
जग को देखा रोये
अमृत-ज़हर जो भी मिला
सबसे भरा प्याला
दिल जला के हमने किया
दुनिया में उजाला।
फूल हम खिलाते चले क़दम-क़दम से
ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।।

काम रहा अपना यारो!
सिर्फ़ दिल चुराना,
रोज़-रोज़ जाके आँखें
मौत से मिलाना
मस्तियों के नाम लिख दी
सारी ज़िन्दगानी,
हमसे ही है क़ायम अब तक
गीतों की जवानी।
मौत से न मरते हम तो मरते शरम से।
ठाठ है फ़क़ीरी अपना जनम-जनम से।।

लेखक

  • गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरीयाँ करते हुए 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए। इस बीच कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। इसी लोकप्रियता के कारण कालांतर में उन्हें बंबई से एक फ़िल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला और फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह वहाँ भी अत्यंत लोकप्रिय गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्हें तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। बाद में वह बंबई के जीवन से ऊब गए और अलीगढ़ वापस लौट आए। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ 1944 में प्रकाशित हुआ था। अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं। वह विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से सम्मानित किए गए थे। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम् श्री और 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।

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