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उतरा है रंग बहारों का/गीत/गोपालदास नीरज

फूलों की आँखों में आँसू
उतरा है रंग बहारों का
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

आंतरिक सुरक्षा के भय से
बुलबुल ने गाना छोड़ दिया
गोरी ने पनघट पर जाकर
गागर छलकाना छोड़ दिया,
रस का अब रास कहाँ
होता है नाटक बस तलवारों का ।
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

काँटों के झूठे बहुमत से
हर सच्ची खुशबू हार गई
जो नहीं पराजित हुए उन्हें
मालिन की चितवन मार गई
हो गया जवानी में बूढ़ा
सब यौवन मेघ-मल्हारों का।
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

यह प्रगति हुई देवालय की
पूजा मदिरालय जा पहुंची
सर्वोदय तजकर राजनीति
तम के सचिवालय जा पहुंची
सब पात्रों का स्वरूप बदला
यूँ घूमा चाक कुम्हारों का।
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

ऐसा अंधा युग-धर्म हुआ
नैतिकता भ्रष्टाचार बनी
विज्ञापन की यूँ मची धूम
रामायण तक अख़बार बनी
सिंहासन तो है संतों का
शासन है चोर बज़ारों का।
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

कमज़ोर नींव, कमज़ोर द्वार
उखड़ी खिड़की, टूटी साँकल
हर तरफ़ मुँडेरों पर बैठे
दुख के काले-काले बादल
अब कौन बचायेगा बोलो
यह घर गिरती दीवारों का।
लगता है आने वाला है
फिर से मौसम अंगारों का।

लेखक

  • गोपालदास 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरीयाँ करते हुए 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए। इस बीच कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। इसी लोकप्रियता के कारण कालांतर में उन्हें बंबई से एक फ़िल्म के लिए गीत लिखने का प्रस्ताव मिला और फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता गया। वह वहाँ भी अत्यंत लोकप्रिय गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए और उन्हें तीन बार फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। बाद में वह बंबई के जीवन से ऊब गए और अलीगढ़ वापस लौट आए। उनका पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ 1944 में प्रकाशित हुआ था। अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं। वह विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से सम्मानित किए गए थे। भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम् श्री और 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।

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