दो और दो तीन/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’
मैं प्रमाणित कर सकता हूँ – कि दो और दो तीन होते हैं। वर्तमान मिथिहास होता है। मनुष्य की शक्ल चमचे जैसी होती है। तुम जानते हो – कचहरियों, बस-अड्डों और पार्कों में सौ-सौ के नोट घूमते फिरते हैं। डायरियाँ लिखते, तस्वीरें खींचते और रिपोर्टें भरते हैं। ‘कानून रक्षा केन्द्र’ में बेटे को माँ पर […]