+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

23 मार्च/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग

किसी दृश्य की तरह बचे

ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की

देश सारा बच रहा बाक़ी

 

उसके चले जाने के बाद

उसकी शहादत के बाद

अपने भीतर खुलती खिडकी में

लोगों की आवाज़ें जम गयीं

 

उसकी शहादत के बाद

देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने

अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी

गला साफ़ कर बोलने की

बोलते ही जाने की मशक की

 

उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद

लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए

कपड़े की महक की तरह बिखर गया

 

शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह

लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था

 

लेखक

  • अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 09 सितम्बर 1950 को ग्राम तलवंडी सलेम, ज़िला जालंधर और निधन 37 साल की युवावस्था में 23 मार्च 1988 अपने गांव तलवंडी में ही हुआ था। वे गुरु नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर के छात्र रहे हैं। उनकी साहित्यिक कृतियां, लौहकथा, उड्ड्दे बाजाँ मगर, साडे समियाँ विच, लड़ांगे साथी, खिल्लरे होए वर्के आदि हैं। पाश एक विद्रोही कवि थे। वे अपने निजी जीवन में बहुत बेबाक थे, और अपनी कविताओं में तो वे अपने जीवन से भी अधिक बेबाक रहे। वे घुट घुटकर, डर डरकर जीनेवालों में से बिलकुल नहीं थे। उनको सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सबके लिए शोषण, दमन और अत्याचारों से मुक्त एक समतावादी संसार चाहिए था। यही उनका सपना था और इसके लिए आवाज़ उठाना उनकी मजबूरी थी। उनके पास कोई बीच का रास्ता नहीं था। त्रासदी यह भी कि भगतसिंह को आदर्श मानने वाले पाश को भगतसिंह के ही शहादत दिन 23 मार्च 1988 को मार दिया गया। धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगतसिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था।  

    View all posts
23 मार्च/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *