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दो और दो तीन/कविता/अवतार सिंह संधू ‘पाश’

मैं प्रमाणित कर सकता हूँ –

कि दो और दो तीन होते हैं।

वर्तमान मिथिहास होता है।

मनुष्य की शक्ल चमचे जैसी होती है।

तुम जानते हो –

कचहरियों, बस-अड्डों और पार्कों में

सौ-सौ के नोट घूमते फिरते हैं।

डायरियाँ लिखते, तस्वीरें खींचते

और रिपोर्टें भरते हैं।

‘कानून रक्षा केन्द्र’ में

बेटे को माँ पर चढ़ाया जाता है।

खेतों में ‘डाकू’ मज़दूरी करते हैं।

माँगें माने जाने का ऐलान

बमों से किया जाता है।

अपने लोगों से प्यार का अर्थ

‘दुश्मन देश’ की एजेण्टी होता है।

और

बड़ी से बड़ी ग़द्दारी का तमग़ा

बड़े से बड़ा रुतबा हो सकता है

तो –

दो और दो तीन भी हो सकते हैं।

वर्तमान मिथिहास हो सकता है।

मनुष्य की शक्ल भी चमचे जैसी हो सकती है।

 

लेखक

  • अवतार सिंह संधू (9 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988), जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 09 सितम्बर 1950 को ग्राम तलवंडी सलेम, ज़िला जालंधर और निधन 37 साल की युवावस्था में 23 मार्च 1988 अपने गांव तलवंडी में ही हुआ था। वे गुरु नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर के छात्र रहे हैं। उनकी साहित्यिक कृतियां, लौहकथा, उड्ड्दे बाजाँ मगर, साडे समियाँ विच, लड़ांगे साथी, खिल्लरे होए वर्के आदि हैं। पाश एक विद्रोही कवि थे। वे अपने निजी जीवन में बहुत बेबाक थे, और अपनी कविताओं में तो वे अपने जीवन से भी अधिक बेबाक रहे। वे घुट घुटकर, डर डरकर जीनेवालों में से बिलकुल नहीं थे। उनको सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सबके लिए शोषण, दमन और अत्याचारों से मुक्त एक समतावादी संसार चाहिए था। यही उनका सपना था और इसके लिए आवाज़ उठाना उनकी मजबूरी थी। उनके पास कोई बीच का रास्ता नहीं था। त्रासदी यह भी कि भगतसिंह को आदर्श मानने वाले पाश को भगतसिंह के ही शहादत दिन 23 मार्च 1988 को मार दिया गया। धार्मिक कट्टरपंथ और सरकारी आतंकवाद दोनों के साथ एक ही समय लड़ने वाले पाश का वही सपना था जो भगतसिंह का था। कविताओं के लिए ही पाश को 1970 में इंदिरा गांधी सरकार ने दो साल के लिए जेल में डाला था।  

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