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छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में/गीत/शैलेन्द्र

छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
आशा दीवानी मन में बँसुरी बजाए
हम ही हम चमकेंगे तारों के उस गाँव में
आँखों की रौशनी हरदम ये समझाए
चाँदी की कुर्सी पे बैठे मेरी छोटी बहना
सोने के सिंहासन पे बैठे मेरी प्यारी माँ
मेरा क्या मैं पड़ा रहूँगा अम्मीजी के पाँव में
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
आशा दीवानी मन में बँसुरी बजाए

मेरी छोटी बहना नाज़ों की पाली शहज़ादी
जितनी-भी जल्दी हो मैं कर दूँगा उसकी शादी
अच्छा है ये बला हमारी जाए दूजे गाँव में
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
आशा दीवानी मन में बँसुरी बजाए

कहेगी माँ, दुल्हन ला बेटा घर सूना-सूना है
मन में झूम कहूँगा मैं, माँ इतनी जल्दी क्या है
गली-गली में तेरे राजदुलारे की चर्चा है
आख़िर कोई तो आएगा इन नैनों के दाँव में
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
आ आ आ अई रे, आ आ आ अई रे
छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
आशा दीवानी मन में बँसुरी बजाए
हम ही हम चमकेंगे तारों के उस गाँव में
आँखों की रौशनी हरदम ये समझाए

लेखक

  • शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।  

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