चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजड़े वाली मुनिया
उड़ उड़ बैठी हलवइया दुकनिया
हे रामा!!!!
उड़ उड़ बैठी हलवइया दुकनिया
आरे!!
बरफ़ी के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया
अ हे अ हे … हे रामा
उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
आहा!!!!
उड़ उड़ बैठी बजजवा दुकनिया
आरे!
कपड़ा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया
जियो जियो पलकदस जियो!!
उड़ उड़ बैठी पनवड़िया दुकनिया
हे रामा!!!!
उड़ उड़ बैठी पनवड़िया दुकनिया
आरे!!
बीड़ा के सब रस ले लियो रे
पिंजड़े वाली मुनिया
लेखक
-
शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।
View all posts