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किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया/गीत/शैलेन्द्र

किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया
अँधेरे घर में किसीने हँसके चराग़ जैसे जला दिया
किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया

शरम के मारे मैं कुछ ना बोली
नज़र ने पर्दा गिरा दिया
मगर वो सबकुछ समझ गए हैं, कि दिल भी मैंने गँवा दिया
किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया

न प्यार देखा, न प्यार जाना
सुनी थीं लेकिन कहानियाँ
जो ख़्वाब रातों में भी न आया, वो मुझको दिन में दिखा दिया
किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया

वो रंग भरते हैं ज़िंदगी में
बदल रहा है मेरा जहाँ
कोई सितारे लुटा रहा था, किसीने दामन बिछा दिया
किसीने अपना बनाके मुझको मुस्कुराना सिखा दिया
अँधेरे घर में किसीने हँसके चराग़ जैसे जला दिया

लेखक

  • शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।  

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