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आ अब लौट चले/गीत/शैलेन्द्र

आ अब लौट चले
आ अब लौट चले
नैन बिछाए बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा
आ अब लौट चले
आ अब लौट चले
नैन बिछाए बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा
आ जा रे आ आ आ

सहज है सीधी राह पे चलना
देख के उल्झन बच के निकलना
कोई ये चाहे माने न माने
बहुत ही मुश्किल गिर के संभलना
आ अब लौट चले
आ अब लौट चले
नैन बिछाए बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा
आ जा रे आ आ आ

आँख हमारी मंजिल पर है
दिल में ख़ुशी की मस्त लहर है
लाख लुभाये महल पराए
अपना घर फिर अपना घर है
आ अब लौट चले
आ अब लौट चले
नैन बिछाए बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा
आ जा रे आ आ आ

लेखक

  • शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र (30 अगस्त, 1923-14 दिसंबर 1966) हिन्दी व भोजपुरी के प्रमुख गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी में और देहान्त मुम्बई में हुआ। उन्होंने राज कपूर के साथ बहुत काम किया। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला । उनका का एकमात्र काव्य-संगह 'न्यौता और चुनौती' मई 1955 ई. में प्रकाशित हुआ । शैलेन्द्र को फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' बहुत पसंद आई। उन्होंने गीतकार के साथ निर्माता बनने की ठानी। राजकपूर और वहीदा रहमान को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई।  

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