उद्धव-शतक/जगन्नाथदास रत्नाकर
मंगलाचरण जासौं जाति बिषय-बिषाद की बिवाई बेगि, चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै। कहै रतनाकर कबित्त-बर-व्यंजन में, जासौं स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥ जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदर में, जड़ता-विषम-तम-तोम दहिबौ करै। जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥ [उद्धव का मथुरा से ब्रज जाना] न्हात जमुना में जलजात एक […]