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Year: 2025

उद्धव-शतक/जगन्नाथदास रत्नाकर

मंगलाचरण जासौं जाति बिषय-बिषाद की बिवाई बेगि, चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै। कहै रतनाकर कबित्त-बर-व्यंजन में, जासौं स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥ जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदर में, जड़ता-विषम-तम-तोम दहिबौ करै। जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥ [उद्धव का मथुरा से ब्रज जाना] न्हात जमुना में जलजात एक […]

चक्रव्यूह : कुँवर नारायण

माध्यम वस्तु और वस्तु के बीच भाषा है जो हमें अलग करती है, मेरे और तुम्हारे बीच एक मौन है जो किसी अखंडता में हमको मिलाता है : एक दृष्टि है जो संसार से अलग असंख्य सपनों को झेलती है, एक असन्तुष्ट चेतना है जो आवेश में पागलों की तरह भाषा को वस्तु मान, तोड़-फोड़ […]

तीसरा सप्तक : कुँवर नारायण

ये पंक्तियाँ मेरे निकट ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को पास लाने : कुछ दूर उड़ते बादलों की बेसंवारी रेख, या खोते, निकलते, डूबते, तिरते गगन में पक्षियों की पांत लहराती : अमा से छलछलाती रूप-मदिरा देख सरिता की सतह पर नाचती लहरें, […]

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