हर बार ठोकरों ने
है सिखलाया संभलना
मिली जूझने की ताक़त
हर बार उपेक्षाओं से
जब-तब निन्दाओं ने
अधिक निखारा हमको
धीरज का उपहार मिला है
दुख के हाथों !
घने अँधेरे ने
प्रकाश की ओर धकेला
घोर उदासी में
आशा की किरणें चमकीं
पतझड़ से ही
मधुऋतु का संकेत मिला है!
जब भी हुआ अकेला
अकुलाया, मुरझाया
साथ कारवाँ के
उल्लसित, निहाल हुआ मन
स्वाभिमान को गिरवी रखकर
हमने कब सुविधाएँ चाहीं?
सँवरें जीवन-मूल्य
भले हम जितना बिखरें।
लेखक
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रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125
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