शब्द को जब आचरण का बल मिलेगा
अर्थ को विश्वास का सम्बल मिलेगा।
तपिश हो अनुभूतियों में आपकी
जब आग बोलें
रंग में डूबे हुए अहसास हों
तब फाग बोलें
दर्द बोलेंगे अगर-दिल भी छिलेगा।
बैठकर तट तरंगों पर तराने
गढ़ना सु-कर है
पार जाना धार का प्रतिकार कर
बिल्कुल इतर है
सामना सच का करेंगे – मुँह सिलेगा।
घट रही है साख शब्दों की
समय रहते संभलिए
सजग होकर लेखनी में
डालते ईमान चलिए
हृदय से हुंकारिए-पर्वत हिलेगा।
लेखक
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रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125
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