छा गये आकाश में
बरसात के बादल !
गरजते , नभ घेरते
ये जलद कजरारे
झूमते ज्यों मत्त कुंजर
क्षितिज के द्वारे
बजा देंगे हर दिशा की
आज ये साँकल !
ग्रीष्मदग्धा धरा का अब
तप फलित होगा
हर्ष से मन खिल उठेगा
तन हरित होगा
थिरकते पग में सजेगी
बूँद की पायल !
लगेंगे फिर बगीचों में
सावनी झूले
मन कहेगा आज बस
आकाश को छू लें
ऊँघती सुधियाँ जगेंगी
मचेगी हलचल !
मन मगन है किसानों का
धान रोपेंगे
संग बिचड़ों के मधुर
अरमान रोपेंगे
गीत उतरेंगे अधर पर
बजेगा मादल !
शिथिल,दुबली-सी नदी में
धार लौटेगी
तट-तरंगों की मधुर
तकरार लौटेगी
उड़ेगा फिर हवा का
भींगा हुआ आँचल !
बरसात के बादल/नवगीत/रवीन्द्र उपाध्याय