+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

प्रश्न/कविता/रवीन्द्र उपाध्याय

नहीं गढ़े चाक पर हमने
सूरज, चाँद
और मिलती है हमें
ढेर धूप-चाँदनी

मौसम नहीं सजाये हमने
और सेंकता है जेठ
भिंगोता है सावन
हमें भी

हमारे हाँके नहीं चलती बयार
और साँस लेने के लिए
पूरे आज़ाद हैं हम

अनाज, हाँ
पसीने से सींच-सींच
हमने उगाये हैं अनाज
तब भी दाने-दाने को
क्यों हैं मोहताज ?

कपड़े, हाँ भाई
धुन-धुन, बुन-बुन कर
हमने बनाये हैं कपड़े
क्यों मगर
हमारे तन पर
झूल रहे लत्ते, चिथड़े?

मकान
जिनकी ईंट-ईंट में
अंकित है
हमारी, थकान
हमारे ही हैं निर्माण
श्रीमान् !
फिर भी क्यों है
हमारे हिस्से
वही जर्जर मचान ?

बहुत उगाये अनाज
अब उगायेंगे प्रश्न
बहुत बुने वस्त्र
अब बुनेंगे प्रश्न
बहुत उठाये मकान
अब उठायेंगे प्रश्न
सिर्फ़ प्रश्न, प्रश्न, प्रश्न

लेखक

  • रवीन्द्र उपाध्याय जन्म- 01.06.1953 विश्वविद्यालय प्राचार्य (से.नि.) विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी), पी-एच. डी. प्रकाशित कृतियाँ : बीज हूँ मैं (कविता संग्रह), धूप लिखेंगे-छाँह लिखेंगे (गीत-ग़ज़ल संग्रह), देखा है उन्हें (कविता संग्रह) संपर्क : दाऊदपुर कोठी, पत्रालय- एम. आई. टी., मुजफ्फरपुर - 842003 (बिहार) मोबाइल नं.- 8102139125

    View all posts
प्रश्न/कविता/रवीन्द्र उपाध्याय

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×