इतिहास (पु०), इति+ह+ आस (अस् धातु लिट् लकार, अन्य पुं०), इतिहास (परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह) धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेश समन्वितं पूर्ववतं कथायुक्त मितिहासं प्रचक्षते (वीरगाथा) *
जैसे की महाभारत (ऐतिहासिक साक्ष्य परंपरा, जिसको. पौराणिक एवं प्रमाण मानते हैं। – लोगों में एक धारणा सी फैली हुई है। कि भारत वर्ष के साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथों का अस्तित्व नहीं है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि भारतीय लोग इतिहास से परिचित ही नहीं थे। परन्तु ऐसा नहीं है भारतीय साहित्य में पुराणों के साथ इतिहास को वेद के समकक्ष माना गया है – ऋग्वेद के मंत्र इतिहास से युक्त है-नारद मुनि ने सनत्कुमार से ब्रह्मविद्या लिखने के समय अपनी अधीत विद्याओं में इतिहास पुराण को पंचम वेद माना गया है। यथा – ऋग्वेदं भगवोऽध्यमि यजुर्वेद सामवेदमथर्वणम्, इतिहास – पुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम् – ( छान्दोग्योपनिषद्) 7/1 ब्राह्मण ग्रंथ तथा प्राचीन आचार्यों की कथाओं में ( इतिहासमाचक्षते’, कहा गया है. वेद के यथार्थ अर्थ को समझने के लिए इतिहास पुराण का अध्ययन आवश्यक बताया गया है। व्यास ने स्वयं कहा गया है कि वेद का उपबृंहण इतिहास एवं पुराण से होना चाहिए क्योंकि इतिहास पुराण से अनभिज्ञ लोगों से वेद भी सदा भयभीत रहता है। राजशेखर ने उपवेदों में इतिहास वेद को सर्वप्रमुख माना है – चाणक्य की इतिहास कल्पना बड़ी विशाल , उदात्त तथा विस्तृत है – वे इतिहास की गणना अथर्ववेद के साथ करते हैं। और फिर इसके अन्तर्गत पुराण, इतिवृत्त आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का अंतर्भाव मानते है ( अथर्ववेद इतिहासवेदौ च वेदाः । पश्चिमं (अहर्भागं)इतिहासश्रवणेपुराणमितिवृत्तमारण्यायिकायिकोदाहरणं -धर्मशास्त्रं अर्थशास्त्र चेतीतिहासः।।) अर्थशास्त्र के अनुसार पाश्चात्य इतिहास तथा भारतीय इतिहास में बहुत अन्तर है।
पाश्चात्य इतिहासकारों ने युद्ध आदि सर्वप्रमुख धारनाओं का विवरण को ही इतिहास स्वीकार कर लिये है। लेकिन भारतीय इतिहास में घटना-वैचित्य विशेष महत्व नहीं रखता । हमारे जीवन सुधार में उनका कहा तक लगाव है, हम उन्हें ही इतिहास स्वीकार करते हैं। भारतीय साहित्य में “इतिहास” शब्द से प्रधानतया महाभारत तथा रामायण का ही सर्वप्रथम ग्रहण होता है या इसे ग्रहण करना सर्वथा उचित भी है।
महाभारत तथा रामायण⇒
कौरवों और पाण्डवों के तथा राम एवं राबण के युगान्तकारी युद्ध का ही सच्चा इतिहास नहीं है, प्रत्युत् उसमें हमारी संस्कृति समाज राजनीति तथा धर्म के प्रतिपादक इतिहास होने का भी गौरव प्राप्त है। रामराज्य की कल्पना जो भारतीय राजनीति में आदर्श मानी जाती है, महर्षि वाल्मीकि की ही देन है वैदिक साहित्य में हम जिस धर्म के सिद्धान्त स्वरूप का दर्शन करते हैं उसी का व्यवहारिक रूप हमें रामायण एवं महाभारत में उपलब्ध होता है । ये दोनों ग्रंथ इतिहास से सम्बन्धित है लेकिन उस अर्थ में नहीं जिस अर्थ में समझा जाता है इतिहास शब्द यहाँ अत्यन्त व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
इतिहास का शब्दार्थ ही है : इति + ह+ आस (इस तरह से निश्चय ही था ) इतिहास के ही द्वारा वेद के अर्थ का उपबृंहण होता है इसका भी यही रहस्य है. वेद के सूक्ष्म अर्थों को हम इतिहास तथा पुराणग्रंथों से ही जनसाधारण के लिए बोधगम्य, सरस तथा सरल भाषा में पाते है। इतिहास तथा पुराण में जो सिद्धान्त प्रतिपादित है वो सिद्धान्त वेद के ही है। व्यास ने इतिहास की महत्ता को बताते हुये लिखा है –
(इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् बिभेत्यल्पश्रुताद् वेदो मामय प्रहरिष्यति ।)
राजशेखर ने अपने काव्यमीमांसा में इतिहास के दो प्रकार बताए हैं।
⇒ ① परिक्रिया इसके अन्तर्गत वह इतिहास आता है। जिसका नायक एक ही व्यक्ति होता है जैसे- रामायण ।
② पुराकल्प यह अनेक नायक वाले इतिहास ग्रंथ हैं जैसे-महाभारत
राजशेखर भी ये दोनों ग्रंथों को इतिहास के अन्तर्गत ही स्वीकार करते है – राजशेखर का कथन परिक्रिया पुराकल्पः इतिहासः गतिद्विधा । स्यादेक नायका पूर्वा द्वितीया बहुनायका ।।