सामाजिक
मुखड़े पे मुखड़े चढ़े, चलें मुखौटे दाँव |
शहर जीतते ही रहे, रहे हारते गाँव |
रहे हारते गाँव, पते की बात बताता।
गया लापता गंज, किन्तु वह पता न पाता।
हुआ पलायन तेज, पकड़िया बरगद उखड़े |
खर-दूषण विस्तार, दुशासन बदले मुखड़े ||
जौ जौ आगर विश्व में, कान काटते लोग।
गलाकाट प्रतियोगिता, है मुश्किल संयोग।
है मुश्किल संयोग, नाक की चिंता छोड़ो।
रखो ताक पर नाक, रखे जब लोग करोड़ो।
कौन सकेगा काट, करेगा कुत्ता भौ भौ।
चलो चाल मदमस्त, बढ़ो नित आगे जौ जौ।।
कुदरत को कुतरे मनुज, दनुज मनुज को खाय।
पोंगा पंडित मौलवी, रहे खलीफा छाय।
रहे खलीफा छाय, किताबी ज्ञान बघारे।
कत्लो गारद लूट, रोज मानवता हारे।
कह रविकर कविराय, बदलनी होगी फितरत।
नहीं करेगी माफ, अन्यथा सहमी-कुदरत।।
देना हठ दरबान को, अहंकार कर पार्क |
छोड़ व्यस्तता कार में, फुरसत पे टिक-मार्क |
फुरसत पर टिक-मार्क, उलझने छोड़ो नीचे |
लिफ्ट करो उत्साह, भरोसा रिश्ते सींचे |
करो गैलरी पार, साँस लंबी भर लेना |
प्रिया खौलती द्वार, प्यार से झप्पी देना ||
भूखा चीता मार मृग, लेता भूख मिटाय।
मृग के प्रति संवेदना, जग में कहां दिखाय।
जग में कहां दिखाय, खाय के डकरे चीता।
चीता करे शिकार, पढ़े मृग केवल गीता
हुई पढ़ाई व्यर्थ, घास का जंगल सूखा।
मरते मृग बेमौत, मारता चीता भूखा।।
बानी सुनना देखना, खुश्बू स्वाद समेत।
पाँचो पांडव बच गये, सौ सौ कौरव खेत।
सौ सौ कौरव खेत, पाप दोषों की छाया।
भीष्म द्रोण नि:शेष, अन्न पापी का खाया ।
लसा लालसा कर्ण, मरा दानी वरदानी।
अन्तर्मन श्री कृष्ण, बोलती रविकर बानी।।
सद्कर्मी रचता रहे, हितकारी साहित्य |
मानवता को दे जगा, करे श्रेष्ठतम कृत्य |
करे श्रेष्ठतम कृत्य, धर्म जब हो बेचारा |
होय भोग का भृत्य, दिखे जब दिन में तारा |
होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी |
भारत बने महान, बने रविकर सद्कर्मी ||
अच्छाई का फायदा, ज्यादा लिया उठाय।
मूर्ख बनाने लग पडे, फिर क्या बचा उपाय।
फिर क्या बचा उपाय, बुरा बन जाय आदमी।
बने भावना शून्य, मतलबी कट्टर वहमी।
कह रविकर चालाक, समझ उनकीअधमाई।
रहता उनसे दूर, दूर रखता अच्छाई।।
कंधे पर होकर खड़ा, आनन्दित है पूत।
बड़ा बाप से मैं हुआ, करता पेश सुबूत।
करता पेश सुबूत, बाप बच्चे से कहता।
और बनो मजबूत, पैर तो अभी बहकता।
तुझको सब कुछ सौंप, लगाऊंगा धंधे पर।
बड़ा होय तब पूत , चढ़ूगा जब कंधे पर।।