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कुण्डलियां/शिवकुमार दीपक

माता मूरत प्रेम की, शुचि, सुभाषिनी,धीर । सभ्य,सुशील,सुधाकिनी,हरे जगत की पीर।। हरे जगत की पीर , समाई भगवत गीता । कर्म, धर्म, में निष्ठ, सती , सावित्री, सीता ।। कह ‘दीपक’ कविराय,शाप से यम घबराता । दुनिया का हर तीर्थ, रखे चरणों में माता ।।-1 हे माँ जननी दे मुझे , ऐसा तू आशीष । […]

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