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Year: 2023

भक्तिन/महादेवी वर्मा

छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कानों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है। पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस संबंध में प्रश्न कर बैठता है, तब […]

उर्वशी/रामधारी सिंह दिनकर

पात्र परिचय पुरुष पुरुरवा: वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक महर्षि च्यवन: प्रसिद्द; भृगुवंशी, वेदकालीन महर्षि सूत्रधार: नाटक का शास्त्रीय आयोजक, अनिवार्य पात्र कंचुकी: सभासद: प्रतिहारी: प्रारब्ध आदि आयु: पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र महामात्य: पुरुरवा के मुख्य सचिव विश्व्मना: राज ज्योतिषी नारी नटी: शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा: अप्सराएं औशीनरी: पुरुरवा […]

रश्मिरथी सर्ग-1-7/रामधारी सिंह दिनकर

प्रथम सर्ग ‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को। किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल। ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, […]

माँ/दया शर्मा

चूल्हे पे खाना बनाती थी, भर पेट सबको खिलाती थी , कभी स्वयं भूखी रह जाती थी । अपना दुख-दर्द छुपाती थी पर संस्कार का दीप जलाती थी, वो माँ हमारी कहलाती थी । पैसों की रहती तंगी थी , पापा के काम में मंदी थी । माँ शिकवा न कभी करती थी, थोड़े  में  […]

कोई तुमसा नहीं/दया शर्मा

यहाँ  आदमी तो बहुत हैं, पर इन्सान  कोई तुमसा नहीं । यहाँ  दोस्त तो बहुत हैं, पर मेहरबान कोई  तुमसा नहीं। ढूँढती फिरती थी नज़रें , किसी  रहनुमा की तलाश में कारवां तो मिल गया , पर हमनवां कोई तुमसा नहीं । यूँ  तो लगते थे सब अपने बेगानों की इस भीड़ में ऐतबार तो […]

बचपन/दया शर्मा

बचपन के वो हसीन पल क्षण क्षण क्यों  जाते हैं  ढल। ऐ दिल ! फिर  वहीं  पे चल वो मौसम  क्यों  गया  बदल । कभी हँसना, कभी  रोना कभी  रूँठना तो कभी  मनाना । वो पेड़ों पे चढ कर गिरना चोरी से फलों का खाना। वो कागज की नाव बनाना कभी  हवाई जहाज  चलाना खो […]

प्रकृति/दया शर्मा

प्रकृति करती ज्यों तो किसी का तिरस्कार  नहीं अत्याचार होता जब मानव का उस पर प्रतिशोध में  करती उसका वहिष्कार  यहीं । काश ! मनुष्य  तुम समझ  पाते बदौलत जिसके तुम  स्वस्थ्य  जीवन जीते, दमन  उसी का करने  पर तुलते क्यों दुःख दर्द के  आँसू पीते पेड़ पौधे  जो शुद्ध  हवा  देते उन्हीं को काट […]

वाणी/दया शर्मा

वाणी की महिमा  अपरम्पार है  । इसका अपना  अथाह संसार है। वाणी  दिलों में  चाहत भरती है। कभी ये ही दिलों  को आहत करती है वाणी  से रिश्ते संवरते हैं । कड़वे बोलों  से ये बिखरते  हैं। मीठी वाणी  लोगों  में  मान बढाती  । दुरुपयोग हो वाणी का तो ये समाज में  शान घटाती । […]

फ़ितरत/दया शर्मा

फ़ितरत में जिनके प्यार हो नफरत  भला वे क्यों करें। अच्छे ही हों सब ,इस बात की हसरत भला वे क्यों करें । कौन जाने छूटे  कब साथ किसी का ज़हमत दूरियों की भला क्यों करें! ले कर चलते हैं जो साथ सभी का हिमाक़त  न तोहमत लगाने की हम करें। उल्फ़त ही  क़वायद  है […]

पंछी/दया शर्मा

मैं हूँ  एक नन्ही सी चिड़िया, सारा नभ है मेरा घर उड़ती रहती हूँ  इधर-उधर, इधर-उधर से  उधर इधर।। सुबह सुबह मैं उठ जाती, शोर मचा मैं पँख फैलाती शीतल हवा मुझे बेहद भाती । एक जगह मैं रह न पाती । पिंजरे में  कभी  बन्द की जाती मैं ये कभी समझ न पाती रो […]