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Year: 2023

आज भी/डॉ. शिप्रा मिश्रा

आज भी.. देखा मैंने उसे पानी में खालिश नमक डाल कर उसने मिटाई अपनी भूख आज भी– खाता है वह सिर्फ रात में ही कभी- कभी तो वह भी उसे होता नहीं नसीब आज भी– उसने जम के पसीने बहाए ढेर सारे और दिन भर की है ईमानदारी से मजूरी आज भी– मिलते हैं उसके […]

बिछिया/डॉ. शिप्रा मिश्रा

उस विवाह में हम भी हुए थे निमंत्रित भरपेट खाए थे भोज और.. मन भर मिठाईयांँ भी एक साड़ी, टिकुली, सेनूर, आलता भेंट भी कर आए थे और.. एक जोड़ी बिछिया भी.. कलेजे का टुकड़ा थी वह मेरी छात्रा नन्दिनी जन्मजात तेजस्विनी ऊर्जस्वित, निष्ठावान मृदुभाषी, सौम्य, शिष्ट उसकी मौन, मूक आँखों ने अनेक बार मेरे […]

तथागत/डॉ. शिप्रा मिश्रा

सभी पुरुष .. प्रवासी नहीं होते लेकिन सभी स्त्रियाँ होती हैं प्रवासी छोड़ जातीं हैं अपनी मिट्टी अपने लोग अपना गाँव- जवार लहलहाते खेत- खलिहान पोखर,अमराईयां, झूले बचपन की सखियाँ घर के आंगन में दबाये कुछ गिलट की अशर्फियां तुलसी चौरे पर छोड़ी हुई आस्था जनेऊ वाले पत्थर मौन महादेव भोर का सूर्योदय संध्या का […]

गुँगिया/महादेवी वर्मा

मैंने स्वयं चाहे कम पत्र लिखे हों; पर दूसरों के लिए पत्र – लेखन मेरा कर्तव्य – सा बन गया है। क्या अपना देहात और क्या पहाड़ी ग्राम, सब जगह मेरी स्थिति अर्जीनवीस जैसी हो जाती है। कहीं कोई दुःखिनी माँ, दूर देश भाग जानेवाले पुत्र को वात्सल्य भरा उद्गार लिख भेजने के लिए विकल […]

बिबिया/महादेवी वर्मा

मेरी शहराती बरेठिन मुझे जिज्जी कहती है और उसका लड़का दमड़ी पुकारता है मौसी जी। नागरिक समाज इसे छोटा काम करनेवालों की बड़ी धृष्टता भी कह सकता है पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगता। सम्भवतः इसका कारण मेरे संस्कार हों। अपनी और अपने पिता की ग्रामीण ननसाल में मुझे बूढ़ी नाइन को बदामो नानी, बूढ़े […]

मन्नु की माई/महादेवी वर्मा

पहले-पहले अरैल के भग्नावशेष में एक पक्की पर टूटी-फूटी इमारत देखकर मैंने उसकी दरकी और प्लास्टर रहित दीवार पर कंडे थापने में तन्मय एक स्त्री से पूछा- ‘यह किसका घर है !’ जिससे प्रश्न किया गया था, उसने अपने खरखरे स्वर को और अधिक रूखा बनाकर उत्तर दिया- ‘तोहका का करै का है ! शहराती […]

जंग बहादुर/पर्वत पुत्र/महादेवी वर्मा

बादामी रंग के पुराने कागज के टुकड़े पर लिखी हुई रसीद उंगलियों में थामे हुए, जब मैं कुलियों के चित्रगुप्त अर्थात ठेकेदार की ओर से मुंह फेरकर बाहर बुझने से पहले जल उठने वाले दीपक-जैसी संध्या को देखने लगी, तब उन्हें अपनी अधीनस्थ आत्माओं का लेखा-जोखा और अपनी महत्ता का वर्णन रोकना पड़ा। कई बार […]

वह चीनी भाई/महादेवी वर्मा

मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और उनकी एकरसता दूर करने वाली, वस्त्र पर पड़ी हुई सिकुड़न जैसी नाक की गठन में भी विशेष अंतर नहीं दिखाई देता। कुछ तिरछी अधखुली और विरल भूरी बरूनियों वाली आँखों […]

ठकुरी बाबा/महादेवी वर्मा

भक्तिन को जब मैंने अपने कल्पवास संबंधी निश्चय की सूचना दी तब उसे विश्वास ही न हो सका। प्रतिदिन किस तरह पढ़ाने आऊँगी, कैसे लौटूंगी, ताँगेवाला क्या लेगा, मल्लाह कितना माँगेगा, आदि-आदि प्रश्नों की झड़ी लगाकर उसने मेरी अदूरदर्शिता प्रमाणित करने का प्रयत्न किया। मेरे संकल्प के विरुद्ध बोलना उसे और अधिक दृढ़ कर देना […]