साकेत अष्ठम सर्ग/मैथिलीशरण गुप्त
चल, चपल कलम, निज चित्रकूट चल देखें, प्रभु-चरण-चिन्ह पर सफल भाल-लिपि लेखें। सम्प्रति साकेत-समाज वहीं है सारा, सर्वत्र हमारे संग स्वदेश हमारा। तरु-तले विराजे हुए,-शिला के ऊपर, कुछ टिके,-घनुष की कोटि टेक कर भू पर, निज लक्ष-सिद्धि-सी, तनिक घूमकर तिरछे, जो सींच रहीं थी पर्णकुटी के बिरछे, उन सीता को, निज मूर्तिमती माया को, प्रणयप्राणा […]