पारिजात सर्ग1-6/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
प्रथम सर्ग (1) गेय गान शार्दूल-विक्रीडित आराधे भव-साधना सरल हो साधें सुधासिक्त हों। सारी भाव-विभूति भूतपति की हो सिध्दियों से भरी। पाता की अनुकूलता कलित हो धाता विधाता बने। पाके मादकता-विहीन मधुता हो मोदिता मेदिनी॥1॥ सारे मानस-भाव इन्द्रधानु-से हो मुग्धता से भ। देखे श्यामलता प्रमोद-मदिरा मेधा-मयूरी पिये। न्यारी मानवता सुधा बरस के दे मोहिनी मंजुता। […]