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Year: 2023

पुरानी कहानीःनया पाठ/फणीश्वरनाथ रेणु

बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन – तूफान – उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु – गाय,बैल-भैंस- नदी में पानी पीते समय कुछ सूँघ कर, आतंकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूँछ उठा […]

ठेस/फणीश्वरनाथ रेणु

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे मजदूर खेत पहुँच कर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता दिखाई […]

लालपान की बेगम/फणीश्वरनाथ रेणु

‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?’ बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा रही है… आधे-आँगन धूप […]

तीसरी कसम/फणीश्वर नाथ रेणु

हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है… पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है। लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में! कंट्रोल […]

प्रिय प्रवास भूमिका/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

विचार-सूत्र सहृदय वाचकवृन्द! मैं बहुत दिनों से हिन्दी भाषा में एक काव्य-ग्रन्थ लिखने के लिए लालायित था। आप कहेंगे कि जिस भाषा में ‘रामचरित-मानस’, ‘सूरसागर’, ‘रामचन्द्रिका’, ‘पृथ्वीराज रासो’, ‘पद्मावत’ इत्यादि जैसे बड़े अनूठे काव्य प्रस्तुत हैं, उसमें तुम्हारे जैसे अल्पज्ञ का काव्य लिखने के लिए समुत्सुक होना वातुलता नहीं तो क्या है? यह सत्य है, […]

प्रिय प्रवास सर्ग1-10/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

1. प्रथम सर्ग दिवस का अवसान समीप था। गगन था कुछ लोहित हो चला। तरु-शिखा पर थी अब राजती। कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा॥1॥ विपिन बीच विहंगम वृंद का। कलनिनाद विवर्द्धित था हुआ। ध्वनिमयी-विविधा विहगावली। उड़ रही नभ-मंडल मध्य थी॥2॥ अधिक और हुई नभ-लालिमा। दश-दिशा अनुरंजित हो गई। सकल-पादप-पुंज हरीतिमा। अरुणिमा विनिमज्जित सी हुई॥3॥ झलकने पुलिनों पर […]

प्रिय प्रवास सर्ग11-17/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

11. एकादश सर्ग मालिनी छन्द यक दिन छवि-शाली अर्कजा-कूल-वाली। नव-तरु-चय-शोभी-कुंज के मध्य बैठे। कतिपय ब्रज-भू के भावुकों को विलोक। बहु-पुलकित ऊधो भी वहीं जा बिराजे॥1॥ प्रथम सकल-गोपों ने उन्हें भक्ति-द्वारा। स-विधि शिर नवाया प्रेम के साथ पूजा। भर-भर निज-ऑंखों में कई बार ऑंसू। फिर कह मृदु-बातें श्याम-सन्देश पूछा॥2॥ परम-सरसता से स्नेह से स्निग्धता से। तब […]

वक्तव्य वैदेही वनवास/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

वक्तव्य वैदेही वनवास : अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ महर्षिकल्प, महामना, परमपूज्य कुलपति श्रीमान् पंडित मदनमोहन मालवीय के पवित्र करकमलों में सादर समर्पित वक्तव्य करुणरस करुणरस द्रवीभूत हृदय का वह सरस-प्रवाह है, जिससे सहृदयता क्यारी सिंचित, मानवता फुलवारी विकसित और लोकहित का हरा-भरा उद्यान सुसज्जित होता है। उसमें दयालुता प्रतिफलित दृष्टिगत होती है, और भावुकता-विभूति-भरित। इसीलिए भावुक-प्रवर-भवभूति […]

वैदेही वनवास सर्ग1-10/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

प्रथम सर्ग उपवन छन्द: रोला लोक-रंजिनी उषा-सुन्दरी रंजन-रत थी। नभ-तल था अनुराग-रँगा आभा-निर्गत थी॥ धीरे-धीरे तिरोभूत तामस होता था। ज्योति-बीज प्राची-प्रदेश में दिव बोता था॥1॥ किरणों का आगमन देख ऊषा मुसकाई। मिले साटिका-लैस-टँकी लसिता बन पाई॥ अरुण-अंक से छटा छलक क्षिति-तल पर छाई। भृंग गान कर उठे विटप पर बजी बधाई॥2॥ दिन मणि निकले, किरण […]

वैदेही वनवास सर्ग11-18/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

एकादश सर्ग रिपुसूदनागमन छन्द : सखी बादल थे नभ में छाये। बदला था रंग समय का॥ थी प्रकृति भरी करुणा में। कर उपचय मेघ-निचय का॥1॥ वे विविध-रूप धारण कर। नभ-तल में घूम रहे थे॥ गिरि के ऊँचे शिखरों को। गौरव से चूम रहे थे॥2॥ वे कभी स्वयं नग-सम बन। थे अद्भुत-दृश्य दिखाते॥ कर कभी दुंदुभी-वादन। […]