युगवाणी/सुमित्रानंदन पंत
बदली का प्रभात निशि के तम में झर झर हलकी जल की फूही धरती को कर गई सजल । अंधियाली में छन कर निर्मल जल की फूही तृण तरु को कर उज्जवल ! बीती रात,… धूमिल सजल प्रभात वृष्टि शून्य, नव स्नात । अलस, उनींदा सा जग, कोमलाभ, दृग सुभग ! कहाँ मनुज को अवसर […]