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Year: 2023

स्वर्ग और पृथ्वी/धर्मवीर भारती

कल्पना ने आश्चर्य में भरकर वातायन के दोनों पट खोल दिए। सामने अनंत की सीमा को स्पर्श करता हुआ विशाल सागर लहरा रहा था। तट पर बिखरी हुई उषा की हलकी गुलाबी आभा से चाँदनी की चंचल लहरें टकराकर लौट रही थीं। प्रशांत नीरवता में केवल चाँदनी की लहरों का मंद-मर्मर गंभीर स्वर नि:श्वासें भर […]

मुरदों का गाँव/धर्मवीर भारती

उस गाँव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं। लोग कहते थे कि वहाँ दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है। शाम होते ही कब्रें जम्हाइयाँ लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अँधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश में घूमा करते […]

गुलकी बन्नो/धर्मवीर भारती

‘‘ऐ मर कलमुँहे !’ अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाजा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, ‘‘तोरे पेट में फोनोगिराफ उलियान बा का, जौन भिनसार भवा कि तान तोड़ै लाग ? राम जानै, रात के कैसन एकरा दीदा लागत है !’’ मारे डर के कि कहीं घेघा […]

तारा और किरण/धर्मवीर भारती

वह विस्मित होकर रुक गया। नील जलपटल की दीवारों से निर्मित शयन-कक्ष-द्वार पर झूलती फुहारों की झालरें और उन पर इंद्रधनुष की धारियां। रंग-बिरंगी आभा वाली कोमल शय्या और उस पर आसीन स्वच्छ और प्रकाशमयी वरुणबालिका। उसका गीत रुक गया और वह देखने लगा, सौंदर्य की वह नवनीत ज्योति… वरुणा आगंतुक की ओर एक कुतूहल […]

मधुज्वाल/सुमित्रानंदन पंत

प्रिय बच्चन को जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर, गाए तुमने स्वप्न रँगे मधु के मोहक स्वर, यौवन के कवि, काव्य काकली पट में स्वर्णिम सुख दुख के ध्वनि वर्णों की चल धूप छाँह भर! घुमड़ रहा था ऊपर गरज जगत संघर्षण, उमड़ रहा था नीचे जीवन वारिधि क्रंदन; अमृत हृदय में, गरल […]

खादी के फूल/सुमित्रानंदन पंत

1. अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर अंतर्धान हुआ फिर देव विचर धरती पर, स्वर्ग रुधिर से मर्त्यलोक की रज को रँगकर! टूट गया तारा, अंतिम आभा का दे वर, जीर्ण जाति मन के खँडहर का अंधकार हर! अंतर्मुख हो गई चेतना दिव्य अनामय मानस लहरों पर शतदल सी हँस ज्योतिर्मय! मनुजों में मिल […]

उत्तरा/सुमित्रानंदन पंत

1. युग विषाद गरज रहा उर व्यथा भार से गीत बन रहा रोदन, आज तुम्हारी करुणा के हित कातर धरती का मन ! मौन प्रार्थना करता अंतर, मर्म कामना भरती मर्मर, युग संध्या : जीवन विषाद से आहत प्राण समीरण ! जलता मन मेघों का सा घर स्वप्नों की ज्वाला लिपटा कर दूर, क्षितिज के […]

युगपथ/सुमित्रानंदन पंत

1. भारत गीत जय जन भारत, जन मन अभिमत, जन गण तंत्र विधाता ! गौरव भाल हिमालय उज्जवल हृदय हार गंगा जल, कटि विन्धयाचल, सिन्धु चरण तल महिमा शाश्वत गाता ! हरे खेत, लहरे नद निर्झर, जीवन शोभा उर्वर, विश्व कर्म रत कोटि बाहु कर अगणित पद ध्रुव पथ पर ! प्रथम सभ्यता ज्ञाता, साम […]

अतिमा/सुमित्रानंदन पंत

1. गीतों का दर्पण यदि मरणोन्मुख वर्तमान से ऊब गया हो कटु मन, उठते हों न निराश लौह पग रुद्ध श्वास हो जीवन ! रिक्त बालुका यंत्र,…खिसक हो चुके सुनहले सब क्षण, क्यों यादों में बंदी हो सिसक रहा उर स्पन्दन ! तो मेरे गीतों में देखो नव भविष्य की झाँकी, नि:स्वर शिखरों पर उड़ता […]

स्वर्णकिरण/सुमित्रानंदन पंत

1. भू लता घने कुहासे के भीतर लतिका दी एक दिखाई, आधी थी फूलों में पुलकित, आधी वह कुम्हलाई । एक डाल पर गाती थी पिक मधुर प्रणय के गायन, मकड़ी के जाले में बंदी अपर डाल का जीवन । इधर हरे पत्ते यात्री को देते मर्मर छाया, उधर खडी कंकाल मात्र सूनी डालों की […]