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धरती की बेटी/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

“क्या री ! सारा दिन यहाँ -वहाँ कूद मचाती रहती है पोरी।“ सकू ने बेटी शेवंती को डाँटते हुए कहा |

“अरे ! आई सोनी और मंजुला के संग खेत में गई थी।“ शेवंती बोली |

“बस हुआ तेरा रोज – रोज खेत में कूदना फांदना। शेवन्ती, अब तू बड़ी हो गई है, घर पर रहकर अपनी भाभी से कुछ रसोई के काम सीखा कर।“

“आई ! तुमसे तो मेरे अप्पा अच्छे हैं । तुम हमेशा मुझको डांटती रहती हो। मेरे अप्पा देखो कितना प्यार करते हैं मुझको।“

“पोरी ! तेरी भलाई के लिए ही बोलती मैं। अरे लड़की जात है, कल को ससुराल जाएगी तो रसोई तो पकाना ही पड़ेगी न ।“

“अरे ! क्या हुआ भागवान किसको गीता का ज्ञान दे रही हो।” शेवन्ती के पिता ने अंदर प्रवेश करते हुए कहा।

“लो, इनकी सुनो, इन्हें तो मेरी बात हमेशा उपदेश ही लगती है। अरे भूल रहे हो बेटी के बाप हो, क्या उसे बेटी वाले संस्कार नहीं दोगे ?”

“तू भी कैसी बात करती है…..संस्कार भी कोई देने वाली चीज है। अरे, ये तो खुद ब खुद आते हैं बेटियों में अपने माता-पिता को देखकर। इसलिए कहता हूँ बात-बात पर चिल्लाना छोड़ दे ,कहीं ये संस्कार…..(अप्पा कुछ कहते इसके पहले ही शेवन्ती के साथ रसोई में काम कर रही बहु भी मुंह में आँचल डाल मुस्कुरा दी ।

“ये बात अप्पा, आप मेरे सबसे अच्छे अप्पा हो।“ कहते हुए शेवंती अप्पा से लिपट गई |

“बिगाड़ो ,बिगाड़ो मुझे क्या !”

“नहीं बिगड़ेगी ….भरोसा कर अपनी बेटी पर ….और हाँ, इस तरह चिल्लाया मत कर उस पर मेरा दिल दुखता है।“

“वो मेरी भी बेटी है जी, जन्म दिया है मैंने उसको। जानता हूँ सकू बाई। बड़ी मन्नत की है मेरी बेटी। तीन बेटों के बाद माँ तुलजा भवानी की पैदल यात्रा की मनौती मांगी थी हमने। हमारी बेटी साक्षात माँ भवानी का आशीर्वाद है, उसके संस्कारों की चिंता तो हमें करनी ही नहीं है।“ नासिक जिले के रहने वाले     सदाशिव राव खेतिहर किसान है। अच्छी खासी खेती है। भरा पूरा घर, तीन बेटे के बाद शेवन्ती का आना घर की खुशियों को मानो दूना कर गया। इसलिए अपने अप्पा की बहुत लाडली थी शेवन्ती। गांव के स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा की विद्यार्थी रही शेवन्ती कि माँ को उसके गृहस्थ जीवन की फिक्र सताने लगी। जो अमूमन हर माँ की चिंता होती है। सदाशिव राव ने अपने ही पास के गाँव के ताल्लुकेदार मल्हार राव के लड़के उमेश मोहंती को शेवन्ती के वर के रूप में चुना, । उमेश फौज में सैनिक था। …..अच्छा समृध्द घर, खुशहाल परिवार उस पर पत्नी को भरपूर प्यार देने वाला उमेश। बेटी की गृहस्थी की गाड़ी को सुख पूर्वक चलते देख सबसे अधिक खुश थे शेवन्ती के अप्पा। पास में ही बेटी का ससुराल खोजा ताकि उसकी खोज खबर मिलती रहे।

एक फौजी के जीवन का अपना सिस्टम होता है | शादी के लिए 20 दिन की छुट्टी स्वीकृत हुई। वह बीस दिन ऐसे फुर्र हुए जैसे नूरजहाँ के हाथ से सफेद कबूतर। उमेश वापस अपनी नौकरी पर चला गया, फिर जल्द ही आने का वादा करके। किन्तु सीमा पर चल रहे हालातों ने उमेश को इजाजत नहीं दी कि शेवन्ती के साथ और वक्त गुजारे। इसी बीच शेवन्ती गर्भवती हुई, दोनों परिवार में उसका बहुत लाड चाव हुआ। दोहाड जेवन, गोद भराई …सारे रीति रिवाज हुए मगर इस उत्सव का आनन्द उमेश महज फोन से ही ले पाया। जब कभी शेवन्ती कहती,

“आहो ! आपकी बहुत याद आती है।कब आओगे ?”

“शेवन्ती जितनी जल्दी होगा आऊँगा। मैं खुद चाहता हूँ अपने बच्चे के जन्म पर वहाँ उपस्थित रहूँ। उसकी आंख खुले तो वह हम दोनों को एक साथ देखे। मैं उसकी पहली आवाज सुनूँ।“

“तो फिर आ जाइए न, देखिये अब तो नौ माह की गोद भी भर गई। डॉक्टर कहते हैं किसी भी वक्त बच्चा हो सकता है |”

“मैंने बॉस को अर्जी दी हुई है शेवन्ती, जैसे ही छुट्टी पास होती है मैं उड़ कर तुम्हारे पास पहुँचूँगा। प्रथम प्रसव मैके में होता है इस नियम के तहत अप्पा अपनी लाडली को अपने घर ले आये थे। अभी तीन दिन ही बीते थे कि रात साढ़े बारह बजे सकू बाई ने पति देव को उठाया,

“सुनिए ! हमें शेवन्ती को लेकर अस्पताल जाना होगा। उसको दर्द शुरू हो गया।” अप्पा ने झट अपनी लकड़ी की पेटी से पैसे निकाले, पड़ौस में रहने वाली अक्का को साथ लिया| हमें, अस्पताल चलना है।  शेवन्ती को अस्पताल में एडमिट कर दिया गया। डॉक्टर और नर्स कमरे में थी। बाहर अप्पा बैचेनी से चहलकदमी कर रहे थे। कभी लेबर रूम तक जाते फिर खिड़की के पास खड़े हो उनके हाथ मानो प्रार्थना की मुद्रा में जुड़ जाते। पत्नी उनकी बैचेनी को समझ रही थी बोली,

“आहो ! आपके इस तरह घूमने से भला क्या बच्चा जल्दी होगा ?…आप एक जगह बैठ क्यों नहीं जाते।“ अप्पा के आंखों के आगे शेवन्ती के ब्याह से लेकर आज तक के सारे चित्र एक-एक कर आ रहे थे। अपने जिगर के टुकड़े को उमेश को सौंप दिया। सैनिक है दामाद सो उसके अपने कर्तव्य हैं मगर अप्पा ने बेटी के प्रति अपने कर्तव्य बखूबी निभाए। आज उनकी वही छुटकी सी शेवन्ती माँ बनने जा रही है।उसके माँ बनते ही उनका भी तो प्रमोशन हो जाना है। उनकी सोच की दिशाएँ यहाँ-वहाँ विचार ही रही थी कि पहले नर्स कमरे से बाहर आई पीछे- पीछे डॉक्टर भी। वे झट दौड़ पड़े।

“काय झाय हो डॉक्टर साहिबा, माझी लेकरु कस है व्हय। (क्या हुआ डाक्टर साहब, मेरी बेटी कैसी है ?)”

तभी अक्का भी दौड़ी – दौड़ी आई,

“डॉक्टर मुलगा कि मुलगी ?(डाक्टरबीटा है या बेटी ?”

“आहो मुलगा झालय तुमची पोर ला। आणि दोघई स्वस्थ आहे।“ (अरे !लड़का हुआ है आपकी बेटी को और दोनों ही स्वस्थ हैं ) डॉक्टर ने खुश होते हुए कहा |

“खूप खूप आभार डॉक्टर साहिबा , खूप खूप आभार।“ अप्पा हाथ जोड़कर विनम्र भाव से बोले।

“अमी बगु शकतो का लेकरु ला ?”( हम देख सकते हैं क्या बच्चे को)

“अभी नहीं, थोड़ी देर में बच्चे और उसकी माँ को लेबर रूम से दूसरे कमरे में शिफ्ट किया जाएगा तब।“

अप्पा ने पहला फोन दामाद को लगाया ,

“आहो ! तुमचा प्रमोशन झाला, तुम्हीं सुद्धा अप्पा झालय हो, लेकरु आलय।“ (सुनो, तुम्हारा प्रमोशन हुआ है , तुम भी पापा बन गये हो, बेटा हुआ है) |

“सच, उमेश ने खुश होते हुए कहा। मैं अभी अपनी छुट्टी के बारे में बात करता हूँ, जितनी जल्दी हो निकलता हूँ।” सदाशिव की खुशी न सम्हलती थी।

“समधी जी बधाई हो आपकी मूँछ पकड़ने वाले आ गया है।“

“सच,…अब आप तो मूंछ रखते नहीं, फिर भी आपको भी बधाई, हम अभी निकलते हैं। ” तब तक शेवन्ती को कमरे में शिफ्ट कर दिया था। सबसे पहले अप्पा ने बच्चे को गोद में लिया और बच्चों की तरह उससे तोतली जुबान में बोलने लगे मानो बच्चा अभी उनसे बोल पड़ेगा |

“अरे बच्चों तुम मामा बन गए। शेवन्ती को बेटा हुआ है।उन्होंने अपने तीनो बेटों को फोन पर खुशखबरी सुनाई।“

“आई ! इसके पापा को फोन किया ?” शेवन्ती ने माँ से पूछा।

“इतनी देर,तेरे अप्पा को तसल्ली है क्या, सबको फोन कर दिया उन्होंने। दामाद जी बोले हैं जैसे ही छुट्टी मिलती है वे निकलते हैं। और तेरे सास – ससुर भी आते ही होंगे।”

“अरे ! समधी आने वाले हैं और मैं मिठाई अब तक नहीं लाया च्च….मैं भी न ।“ अप्पा को समझ नहीं आ रहा था क्या करें क्या न करें। वे झट बाजार की तरफ निकल गए। लगभग आधा घण्टे बाद वे बाजार से लौटे तो उनके दोनों हाथों में मिठाई के डिब्बे थे। एक थैली में बच्चे के लिए खिलौने भी। किन्तु अस्पताल के दरवाजे पर तीनों बेटे मुंह लटकाए खड़े थे।

“अरे बच्चों, तुम मामा बन गए हो,ऐसे मुँह लटकाए क्यों खड़े हो। देखा शेवन्ती के बच्चे को ?”

“अप्पा बहुत बुरी खबर है।“ बेटा बोला |

“बहुत बुरी खबर… !!”

“जीजू, अपनी  शेवन्ती के पति को गोली लगने से वे शहीद हो गए।” अप्पा को लगा मानो किसी ने उनके कान में उबलता हुआ तेल डाल दिया हो।

“कौन बोला रे तुमको ये फालतू बात।“

“अप्पा ! शेवन्ती के ससुराल से ही फोन आया है।आपसे खुशखबरी सुनकर वे यहां आने की तैयारी कर ही रहे थे कि सेना से फोन आया। अप्पा वहाँ बहुत हड़कम्प मचा है।”अप्पा के हाथों से मिठाई के पैकेट खुलकर सड़क पर फैल गए। खिलौने बेजान से नीचे पड़े थे। इतनी मनहूस खबर सुन अप्पा भी तो निर्जीव ही हो गए थे। उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया।वे चक्कर खाकर गिरने ही वाले थे कि बेटों ने सम्हाल लिया।

“हे देवा ! ये मेरे किस कर्म का फल दिया आपने ?…ऐसे कैसे …सुबह  7 बजे ही तो मेरी उनसे बात हुई थी।“

“अप्पा सारे सैनिक सुबह -सुबह मैदान में परेड कर रहे थे कि दुश्मनों ने वहाँ अटैक कर दिया। 20-25 सैनिक मारे गए।“

“क्या शेवन्ती को पता है।“ अप्पा ने रोते हुए पूछा।

“नहीं अप्पा ,हम तो अंदर गए ही नहीं, हिम्मत ही नहीं हो रही। आपका ही इंतजार करते खड़े हैं।“

“बेटा ! सबसे पहले किसी भी तरह शेवन्ती के कमरे के टी वी का तार निकल दो। उसे कोई भी मोबाइल मत देना….वरना उसके दिमाग पर असर हो जाएगा। अभी वो बहुत कमजोर है। कुछ ही घण्टे तो हुए हैं मेरी बेटी को प्रसव पीड़ा से गुजरी है और ईश्वर ने ये …..हे ईश्वर कैसा न्याय ….ये मेरी समझ में नहीं आया। साल भर में विधवा हो गई मेरी बेटी।” अप्पा अपने हाथों ही अपने सिर पर थप्पड़ मार जा रहे थे। तभी अक्का उन्हें देख बाहर आ गई।

“आ गए भैया, ले आये मिठाई ?”

“मेरी बेटी को कुछ मत बताना अक्का ….” कहते हुए अप्पा अक्का के पैरों पर गिर पड़े।

“अरे ! मगर हुआ क्या, क्या हो रहा है ये सब ….क्या न बताऊं शेवन्ती को.. और बच्चों ये मिठाई इस तरह मिट्टी में ….!”

“अक्का ! हमारा दामाद ,शेवन्ती का पति  शहीद हो गया।“

“हाय राम ….ये कैसी खबर सुना रहे हो भाई।“

“मैं भी यही कहता हूँ अक्का ,यह खबर सुनने से पहले मुझको मौत क्यों नहीं आ गई।” अप्पा दोनों हाथों से छाती पीटने लगे। बेटों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला।

“अप्पा आप ऐसे करेंगे तो शेवन्ती को हम कैसे सम्हालेंगे।“ थोड़ी देर पहले जहां उत्सव का माहौल था अब मरघट सी मायूसी छाई थी। जैसे तैसे अप्पा अपने तीनों बेटों के साथ अंदर कमरे में पहुंचे तो उनकी आंखें शेवन्ती का सामना नहीं कर पा रही थीं । जानते जो थे उनकी बेटी उनका चेहरा अक्षरश: पढ़ लेती है | जैसे -तैसे बेटे ने शेवन्ती की नजर बचा टी वी का कनेक्शन बन्द कर फ़िया। जिंदगी में आये तूफान से अनजान शेवन्ती अप्पा को देखते ही बोली,

“अप्पा ! आप तो मिठाई लेने गए थे न कहाँ है मिठाई ?”

“अरे पोरी ! क्या कहूँ पता नहीं आज क्या हुआ है इन दुकानदारों को कोई दुकान ही खुली नहीं मिली। पता नहीं क्यों ?” अप्पा दरवाजे की ओर देखते हुए बोले |

“अच्छा, इनका फोन आया था, क्या बोले ?”

“जल्दी आएंगे बोले।” कहते हुए अप्पा तेजी से बाहर निकल गए और खिड़की की चौखट से अपना सिर पटक रोने लगे।

“अरे ! ये अप्पा एकदम बाहर क्यों चले गए ?”

“वो कोई दवाई रह गई थी लाने को ,वही लाने की याद आ गई होगी।“

“ला तो भाई मुझे दे फोन मैं बात करती हूँ।“

“इस कमरे में नेटवर्क नहीं आता ताई।“ घर से भाभी ने सभी के लिए खाना भेजा, मगर सिवाय शेवन्ती के किसी ने खाना नहीं खाया। भोली शेवन्ती जीवन में मिली इस खुशी का जश्न मनाने में मशरूफ थी  उसकी नजर भविष्य की इस दुर्घटना को पढ़ ही नहीं पाई। शाम को फिर भाई खाना लेकर आया और अप्पा को एक तरफ ले जाकर बोला,

“अप्पा आज से ठीक पांचवे दिन सेना के लोग जीजू का पार्थिव लेकर आने वाले हैं। तब तक दीदी को  बताना क्या उचित होगा ?”

“नहीं रे पोर, बिल्कुल नहीं। नाजों में पली मेरी बेटी मर जाएगी । हमें उसे सम्हालना होगा।” अप्पा बेटी को एक पल अकेला नहीं छोड़ते। खुद में हिम्मत नहीं थी बेटी का सामना करने की सो थोड़ी -थोड़ी देर में जाकर बेटी को देख आते। वो चार दिन चार युग की तरह बीते उस परिवार पर। बेटी से भले ही घटना छिपा ली मगर उस घटना ने भीतर ही भीतर कितना तोड़ा है उन्हें वे ही जानते हैं।पांचवा दिन उगते ही जीप अस्पताल के दरवाजे पर आकर खड़ी थी। शेवन्ती को पेट भर नाश्ता करा दिया। जानते जो थे अब बच्ची जाने कब सुख से निवाले खा पाएगी | अप्पा बोले,

“चल पोर तुझे तेरे घर जाना है।“

“इतनी जल्दी ! अप्पा क्या इतनी जल्दी भेज दोगे मुझे अपने घर।“

“पोर ! तेरे ससुराल वालों का कहना है कि बच्चे का पांचवा उनके घर ही होगा। हम इस रीत को पूरा करके शाम को वापस यहाँ आ जाएंगे।“

“अच्छा ! ऐसा कोई रिवाज है किसी ने मुझे बताया  नहीं  !”जीप में बैठते हुए शेवन्ती बोली। माँ ने उसकी बात को अनसुना व अनदेखा करते हुए कहा,

“पोरी ! बच्चे को पेटभर दूध पिला दे पता नहीं वहां समय मिले न मिले।” आधे घण्टे में जीप शेवन्ती के गांव तक पहुंच गई थी। अप्पा ने बेटी का ध्यान करते हुए जीप को कपड़े से पैक कर दिया था।

“अप्पा ये आज गांव में इतनी चहल पहल क्यों है ? और ये इतनी बड़ी- बड़ी गाड़ियां। ..सेना की गाड़ी भी खड़ी है। …ये लाल बत्ती की गाड़ी भी है लगता है बड़े- बड़े अफसर आये हैं आज गांव में। कुछ तो खास है।” अप्पा कुछ नहीं बोले सीधे गाड़ी चलाते रहे।

“अरे वहां कहाँ अप्पा, उधर तो स्कूल है, सीधे घर ले चलो न गाड़ी।“ अप्पा फिर भी खामोश थे। जैसे -जैसे गाड़ी स्कूल मैदान के पास पहुंच रही थी एक स्वर ऊंचा होता जा रहा था। गाडी भले ही तीनों ओर से चादर से पैक की थी मगर सामने काँच से दिखाई दे रहा था | उमेश मोहंती अमर रहे। खम्बों, दीवारों पर लगे फ़्लैग्स, बैनर दिखाई देने लगे जिन पर उमेश की फोटो थी। और बड़े -बड़े अक्षरों में लिखा था।

‘शहीद उमेश मोहंती’ पल भर में वह सैनिक पत्नी सब कुछ समझ गई।एक -एक बात उसके स्मृति पटल पर आने लगी। वो अचानक अस्पताल के टी वी का खराब हो जाना, मोबाइल का नैटवर्क न मिलना, अप्पा का मिठाई लेने जाना और खाली हाथ लौट आना, मुझसे आंखें चुराना, बच्चे के पांचवी के नाम पर मुझे यहाँ लाना…जीप से उतरते ही सामने लकड़ी की पेटी में तिरंगे में लिपटे उमेश का पार्थिव रखा था।उसके एक ओर उमेश के माता -पिता और परिजन खड़े थे। शेवन्ती यह देखते ही चीख पड़ी।दौड़कर लकड़ी की पेटी पर गिर पड़ी। वह एकटक उमेश को देखे जा रही थी कुछ बुदबुदा रही थी,

 

“आप तो बेटे के जन्म पर उपस्थित रहने वाले थे न, तुम तो कहते थे मेरा बेटा मेरे सामने, मेरी गोदी में आंखें खोलेगा ….फिर एक सैनिक होकर आप अपना वचन अधूरा छोड़कर क्यों चले गए ? हमारा बच्चा मुझसे पूछेगा, आई मेरे बाबा कैसे दिखते थे ? तो मैं उसे क्या बताऊँगी। क्या बताऊँगी बाबा की गोदी का सुख क्या होता है ?” इसी बड़बड़ाहट के साथ उस पर बेहोशी छाने लगी। सभी उसे होश में लाने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि अभी अंतिम संस्कार होना बाकी है। बेटी की ऐसी हालत देख अप्पा की छाती में सांसें न समाती थी।

वक्त भला कब किसके लिए रुका है।आज तो भारत माँ की आंखों से भी खून के आँसू बह रहे थे जब उमेश का पार्थिव चिता पर रख गया। उसके पिता के एक हाथ में चिता की लकड़ी थी तो दूसरे हा थ में उमेश का नवजात। चिता को नवजात के हाथों अग्नि देने का संस्कार पूर्ण हुआ। वह शिशु अभी इस धरती पर आया ही था कि विधाता ने उसे जन्म और मृत्यु के फंदे में जकड़ लिया | वह नहीं जानता जन्म का उत्सव और मृत्यु का शोक | एक शहीद की चिता धू- धू कर जल रही थी। दो माँ ओं की कोख ( जन्म देने वाली माँ, भारत माँ) उजड़ गई। एक सुहागन का सिंदूर शत्रुओं की भेंट चढ़ गया। उधर टेंट और माइक लगी सभा में अफसर द्वारा उमेश की बहादुरी के किस्से सुनाये जा रहे थे | शोक संदेश के साथ घोषणा की जा रही थी,

 

“सेना द्वारा शहीद उमेश मोहंती की पत्नी को समस्त सुविधाओं के साथ स्कूल में नौकरी दी जाएगी।” अभी घोषणा पूरी ही हुई थी कि अचानक शेवन्ती उठी उसने ससुर जी की गोदी से बच्चे को लिया और पांच दिन की वह प्रसूता लड़खड़ाती हुई माइक पर जा खड़ी हुई। अप्पा हतप्रभ थे, अचानक शेवन्ती को क्या हुआ,

 

“इस बच्चे को अभी कुछ दिन अपने उदर पूर्ति के लिए मेरी जरूरत है, फिर मैं अपने पति के अधूरे सपनों को पूरा करने सेना में भर्ती होना चाहती हूँ। जो दुश्मन मेरे पति से बच गए, उनसे अब मेरा सामना होगा।” पूरी सभा में कुछ देर सन्नाटा रहा फिर तालियाँ गूंज उठी |

 

दूर खड़े अप्पा का हाथ अपनी बेटी के सम्मान में सैल्यूट की मुद्रा में उठ गया ।

लेखक

  • डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’ (वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद) शिक्षा - एम ए अर्थशास्त्र., एम ए हिन्दी, एम एड., पी एच डी हिन्दी. जन्म – शोलापुर महाराष्ट्र अनुभव- महाविद्यालय में प्राचार्य । आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर सक्रियता, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित | मो – 9926481878 संग्रह प्रकाशनः- ( एकल पुस्तकें) शिक्षा एवं साहित्य पर 70 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित लघुरूपक – ( २० पुस्तकें ) साँझा संग्रह – (अनेक ) सम्मान अंतराष्ट्रीय सम्मान – 4 राष्ट्रीय सम्मान – लभगभ 60 से अधिक सम्मान 14 राज्यों से उत्कृष्ट लेखन हेतु सम्मानित | निवास - डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’, 30 सीनियर एम् आई जी , अप्सरा कोम्प्लेक्स A सेक्टर, इंद्रपुरी भेल क्षेत्र भोपाल -462022

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