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यादों का परजीवी बनकर/डॉ. बिपिन पाण्डेय

करवट लेती यादें
रोम रोम में
पड़ी सलवटें,
करवट लेती यादें।
जब तक आग
चिलम में बाकी,
हुक्का पीना होगा।
यादों का
परजीवी बनकर,
हमको जीना होगा।
उर से लिपटी
रोतीं रातें,
कैसे उन्हें भगा दें?
पाट नहीं सकते
हम दूरी,
बीच दिलों के आई।
नौ दिन चले
मगर पहुँचे हैं,
केवल कोस अढ़ाई।
अहम् सुलाने की खातिर,
लोरी पुनः सुना दें।

लेखक

  • डाॅ. बिपिन पाण्डेय जन्म तिथि: 31/08/1967 पिता का नाम: जगन्नाथ प्रसाद पाण्डेय माता का नाम: कृष्णादेवी पाण्डेय शिक्षा: एम ए, एल टी, पी-एच डी ( हिंदी) स्थाई पता : ग्राम - रघुनाथपुर ( ऐनी) पो - ब्रह्मावली ( औरंगाबाद) जनपद- सीतापुर ( उ प्र ) 261403 रचनाएँ (संपादित): दोहा संगम (दोहा संकलन), तुहिन कण (दोहा संकलन), समकालीन कुंडलिया ( कुंडलिया संकलन) मौलिक- स्वांतः सुखाय (दोहा संग्रह),शब्दों का अनुनाद ( कुंडलिया संग्रह) ,अनुबंधों की नाव ( गीतिका संग्रह), अंतस् में रस घोले ( कहमुकरी संग्रह) साझा संकलन- कुंडलिनी लोक, करो रक्त का दान, दोहों के सौ रंग, भाग-2,समकालीन मुकरियाँ ,ओ पिता!, हलधर के हालात, उर्वी, विवेकामृत-2023,उंगली कंधा बाजू गोदी, आधुनिक मुकरियाँ और अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। पुरस्कार: दोहा शिरोमणि सम्मान ,मुक्तक शिरोमणि सम्मान,कुंडलिनी रत्न सम्मान,काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान, साहित्यदीप वाचस्पति सम्मान,लघुकथा रत्न सम्मान ,आचार्य वामन सम्मान आदि वर्तमान पता : केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-2, रुड़की, हरिद्वार ( उत्तराखंड) 247667 चलभाष : 9412956529

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