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मुक्तिबोधःएक संस्मरण/हरिशंकर परसाई

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया जिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्तिबोध को निकट से देखते रहे हैं, जानते हैं कि दुनियावी अर्थों […]

रानी नागफनी की कहानी भाग1/हरिशंकर परसाई

यह एक व्यंग्य कथा है। ‘फेंटजी’ के माध्यम से मैंने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फेंटेजी’ का माध्यम कुछ सुविधाओं के कारण चुना है। लोक-मानस से परंपरागत संगति के कारण ‘फेंटेजी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है इसमें स्वतंत्रता भी काफी होती है और कार्यकारण संबंध का शिकंजा ढीला होता है। […]

रानी नागफनी की कहानी भाग2/हरिशंकर परसाई

होना बीमार और लगना पेनिसिलिन अस्तभान अब रात-दिन नागफनी के चित्रों को देखता रहता और ‘हाय ! हाय !’ करता रहता । प्रेम की पीड़ा से आठों पहर तड़पता रहता। उसकी यह हालत देखकर मुफतलाल घबड़ाया और एक नामी डॉक्टर को बुला लाया । डॉक्टर स्टेथिस्कोप की माला पहने अस्तभान के पलंग के पास बैठ […]

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