साकेत द्वादश सर्ग/मैथिलीशरण गुप्त
ढाल लेखनी, सफल अन्त में मसि भी तेरी, तनिक और हो जाय असित यह निशा अँधेरी। ठहर तमी, कृष्णाभिसारिके, कण्टक, कढ़ जा, बढ़ संजीवनि, आज मृत्यु के गढ़ पर चढ़ जा! झलको, झलमल भाल-रत्न, हम सबके झलको, हे नक्षत्र, सुधार्द्र-बिन्दु तुम, छलको छलको। करो श्वास-संचार वायु, बढ़ चलो निशा में, जीवन का जय-केतु अरुण हो […]