सैरन्ध्री/मैथिलीशरण गुप्त
सुफल – दायिनी रहें राम-कर्षक की सीता; आर्य-जनों की सुरुचि-सभ्यता-सिद्धि पुनिता। फली धर्म-कृषि, जुती भर्म-भू शंका जिनसे, वही एग हैं मिटे स्वजीवन – लंका जिनसे। वे आप अहिंसा रूपिणी परम पुण्य की पूर्ति-सी, अंकित हों अन्तःक्षेत्र में मर्यादा की मूर्ति-सी। बुरे काम का कभी भला परिणाम न होगा, पापी जन के लिए कहीं विश्राम न […]