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चंद्रकांता संतति खंड 1 भाग 1/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनना पड़ा। बहुतों की यह राय हुई कि महाराज शिवदत्त का दिल अभी तक साफ नहीं हुआ इसलिए […]

चंद्रकांता संतति खंड 1 भाग2/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया चाहते हैं मगर वह अपनी धुन में ऐसी उलझी […]

चंद्रकांता संतति खंड1 भाग3/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि तुम्हारी बात का जवाब कल देंगे इसलिए दूसरे दिन […]

चंद्रकांता संतति खंड1 भाग4/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। हम पहले लिख आए हैं कि जब लाली और किशोरी […]

चंद्रकांता संतति खंड2 भाग5/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये ‘मारो! मारो!’ कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लोगों ने सबसे पहले किशोरी को चिता पर से खींच लिया इसके […]

चंद्रकांता संतति खंड2 भाग6/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ”हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ बुराई न की थी, फिर किस कम्बख्त ने तुम्हारे साथ बदी की प्यारे […]

चंद्रकांता संतति खंड2 भाग7/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, वह बहुत ही भयानक और खतरनाक था। कहीं-कहीं तो बिल्कुल […]

चंद्रकांता संतति खंड2 भाग8/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर लिया जिनकी बदौलत दो घण्टे पहले वह बहुत ही […]

काजर की कोठरी खंड1-5/देवकीनन्दन खत्री

काजर की कोठरी : खंड-1 संध्या होने में अभी दो घंटे की देर है मगर सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे , क्योंकि काली-काली घटाओं ने आसमान को चारों तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौड़ाइए मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नहीं होता कि संध्या होने में अभी […]

काजर की कोठरी खंड6-13/देवकीनन्दन खत्री

काजर की कोठरी : खंड-6 पारसनाथ अपने चाचा के हाल-चाल बराबर लिया करता था। उसने अपने ढंग पर कई ऐसे आदमी मुकर्रर कर रखे थे जो कि लालसिंह का रत्ती-रत्ती हाल उसके कानों तक पहुँचाया करते और जैसा कि प्रायः कुपात्रों के संगी-साथी किया करते हैं उसी तरह उन खबरों में बनिस्बत सच के झूठ […]

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