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नये जमाने की मुकरी/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

सब गुरुजन को बुरो बतावै । अपनी खिचड़ी अलग पकावै । भीतर तत्व न झूठी तेजी । क्यों सखि साजन ? नहिं अँगरेजी । तीन बुलाए तेरह आवैं । निज निज बिपता रोइ सुनावैं । आँखौ फूटे भरा न पेट । क्यों सखि साजन ? नहिं ग्रैजुएट । सुंदर बानी कहि समुझावै । बिधवागन सों […]

अंधेर नगरी चौपट्ट राजा/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

ग्रन्थ बनने का कारण बनारस में बंगालियों और हिन्दुस्तानियों ने मिलकर एक छोटा सा नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर नियत किया है, जिसका नाम हिंदू नैशनल थिएटर है। दक्षिण में पारसी और महाराष्ट्र नाटक वाले प्रायः अन्धेर नगरी का प्रहसन खेला करते हैं, किन्तु उन लोगों की भाषा और प्रक्रिया सब असंबद्ध होती है। ऐसा […]

भारतदुर्दशा/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतदुर्दशा पहला अंक मंगलाचरण जय सतजुग-थापन-करन, नासन म्लेच्छ-आचार। कठिन धार तरवार कर, कृष्ण कल्कि अवतार ।। स्थान – बीथी (एक योगी गाता है) (लावनी) रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। धु्रव ।। सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो। सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो ।। सबके पहिले […]

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