अगर नंद दुलारे नहीं होते
तो निराला, निराला नहीं होते
पंत, पंत नहीं होता अगर बख्शी नहीं होते
जमाना वो था जब हीरे भी थे और जौहरी भी
कुछ हीरे को अवश्य वक्त लगा
जौहरी तक पंहुचने में
पर हीरे ने ही हीरे की कद्र की
मुक्तिबोध ने जाना शमशेर को
और रामविलास ने मुक्तिबोध को
पर मित्रों!
विकट परिस्थितियों के बीच
आज न जाने कितने
निराला, पंत, मुक्तिबोध
समय से पहले
काल के गर्त में समा गये
अंधेरे कोठारी में
उनकी अभिव्यक्ति की चीख
दफ़्न हो चुकी है,
अब कुछ चमकने वाले पत्थर भी
नगीनों में शुमार हो गये
वक्त की विडम्बना देखिए
पारखी नजरों में भी खोट आ गया है,
धारा के विपरीत बहने का
हिम्मत न जुटा पाना
समय के साथ समझौता कर लेना
चलन हो गया है,
अब तो साहित्य के पनघटों पर
अपने अपने कैनवास में
सिमटे हुए लोग
चीख रहे हैं अपने अपने भोंपू लेकर
और इस शोरगुल के बीच
किनारे पर पड़े साहित्य की लाशों पर
उग रहे हैं कुकुरमुत्ते।
गोविंद पाल
शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। एवं आई टी आई इलैक्ट्रिकल तकनीकी शिक्षा।
लेखन : 1979 से
जन्म तिथि :28 अक्तूबर 1963
पिता :स्व. नगेन्द्र नाथ पाल,
माता:स्व. चिनू बाला पाल
पत्नी:श्रीमति दीपा पाल
पुत्र : सी ए - प्लावनजीत पाल
पता :203 बी, न्यू रुआबांधा सेक्टर, पोः-भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) 490006
आकाश वाणी तथा दर्जनों टी वी चैनलों से बाल कविता, बाल नाटक एवं हास्य व्यंग्य व अन्य कविताओं का प्रसारण तीन अप्रैल से बारह अप्रैल 2018 तक बांग्लादेश की साहित्यिक यात्रा में बांग्लादेश के कई शहरों में बांग्लादेश के पार्लियामेंट में कविता पाठ एवं की पुरस्कार विजेता सम्मान प्राप्त।
हाल ही में म. प्र. साहित्य अकादमी के सुप्रसिद्ध कवि, लेखक व समीक्षक एवं म. प्र. साहित्य अकादमी के संयोजक श्री घनश्याम मैथिल "अमृत" द्वारा लिखित समीक्षात्मक पुस्तक रचना के साथ साथ में हिंदुस्तान के सबसे उत्कृष्ट 28 पुस्तकों की समीक्षा में गोविंद पाल की काव्य संग्रह "बोनसाई" को भी शामिल किया गया है।