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निक्की, रोजी और रानी/महादेवी वर्मा

बाल्यकाल की स्मृतियों में अनुभूति की वैसी ही स्थिति रहती है, जैसी भीगे वस्त्र में जल की । वह प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता, किन्तु वस्त्र के शीतल स्पर्श में उसकी उपस्थिति व्यक्त होती रहती है । इन स्मृतियों में और भी विचित्रता है। समय के माप से वे जितनी दूर होती जाती हैं, अत्मीयता के […]

नीलू कुत्ता/महादेवी वर्मा

नीलू की कथा उसकी माँ की कथा से इस प्रकार जुड़ी है कि एक के बिना दूसरी अपूर्ण रह जाती है। उसकी अल्सेशियन माँ उत्तरायण में लूसी के नाम से पुकारी जाती थी। हिरणी के समान वेगवती साँचे में ढली हुई देह, जिसमें व्यर्थ कहने के लिए एक तोला मांस भी नहीं था। ऊपर काला […]

गौरा गाय/महादेवी वर्मा

(गाय के नेत्रों में हिरन के नेत्रों-जैसा विस्मय न होकर आत्मीय विश्वास रहता है। उस पशु को मनुष्य से यातना ही नहीं, निर्मम मृत्यु तक प्राप्त होती है, परंतु उसकी आंखों के विश्वास का स्थान न विस्मय ले पाता है, न आतंक।) गौरा मेरी बहिन के घर पली हुई गाय की व:यसंधि तक पहुंची हुई […]

दुर्मुख-खरगोश/महादेवी वर्मा

किसी को विश्वास न होगा कि बोल-चाल के लड़ाकू विशेषण से लेकर शुद्ध संस्कृत की ‘दुर्मुख’, ‘दुर्वासा’ जैसी संज्ञाओं तक का भार संभालने वाला एक कोमल प्राण खरगोश था। परन्तु यथार्थ कभी-कभी कल्पना की सीमा नाप लेता है। किसी सजातीय-विजातीय जीव से मेल न रखने के कारण माली ने उस खरगोश का लड़ाकू नाम रख […]

सोना हिरणी/महादेवी वर्मा

सोना की आज अचानक स्मृति हो आने का कारण है। मेरे परिचित स्वर्गीय डाक्टर धीरेन्द्र नाथ वसु की पौत्री सस्मिता ने लिखा है : ‘गत वर्ष अपने पड़ोसी से मुझे एक हिरन मिला था। बीते कुछ महीनों में हम उससे बहुत स्नेह करने लगे हैं। परन्तु अब मैं अनुभव करती हूँ कि सघन जंगल से […]

गिल्लू/महादेवी वर्मा

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज […]

नीलकंठ/महादेवी वर्मा

प्रयाग जैसे शान्त और सांस्कृतिक आश्रम-नगर में नखास- कोना एक विचित्र स्थिति रखता है। जितने दंगे-फसाद ओर छुरे चाकुबाजी की घटनाएं घटित होती हैं, सबका अशुभारम्भ प्रायः नखासकोने से ही होता है। उसकी कुछ और भी अनोखी विशेषताएं हैं। घास काटने की मशीन के बड़े-चौड़े चाकू से लेकर फरसा, कुल्हाड़ी, आरी, छुरी आदि में धार […]

सफाईकर्मी गुलाबो/गोविन्द पाल

ट्रेक्टर ट्रॉली के पीछे पीछे सीटी बजाती हुई आती थी गुलाबो घर – घर से बजबजाती हुई दुर्गन्ध युक्त सड़ा हुआ कचरा ही नहीं उठाती थी गुलाबो बल्कि कई बिमारियों से निजात दिलाती थी गुलाबो, ड्राइवर की झिड़की के बावज़ूद गेट पर कचरे की बाल्टी के इंतजार में खड़ी रहती थी गुलाबो, गंदी बस्ती में […]

कुकुरमुत्ते/गोविंद पाल

अगर नंद दुलारे नहीं होते तो निराला, निराला नहीं होते पंत, पंत नहीं होता अगर बख्शी नहीं होते जमाना वो था जब हीरे भी थे और जौहरी भी कुछ हीरे को अवश्य वक्त लगा जौहरी तक पंहुचने में पर हीरे ने ही हीरे की कद्र की मुक्तिबोध ने जाना शमशेर को और रामविलास ने मुक्तिबोध […]

खेद के साथ कविता का लौटना/गोविंद पाल

संपादक को भेजी हुई कविता खेद के साथ जब जब लौट आई तब तब मैं भी लौट आया अंधेरों से उजाले में, शायद मेरे जैसे किसी कवि का कविता गढ़ना जैसे पत्थरों को तराशते हुए शिल्पकार की एक गलत चोट से अधगढ़े शिल्प का टूट कर बिखर जाना, इसी तरह कविता का लौटना और मेरा […]

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