जंगल से बाहर आते ही कोमल, मासूम, खूबसूरत आँखोंवाली हिरणी शिकारियों से घिर गई। भागने की कोशिश करती। और घिर जाती। उसने अपने अंदर की ताकत को जगाया। शिकारियों को अपने सींग से घायल कर कुलांचें मारती उनके चंगुल से नौ दो ग्यारह!
जंगल में वापस आकर सुस्ताने लगी। बैठ गई। अभी भी आँखों में भय के डोरे देखे जा सकते थे। कहीं मन में विश्वास और बच जाने का भरोसा भी अँखुआया।
लेकिन कुछ भी समझने से पूर्व हिरणी चौकड़ी भरना भूल गई। उसकी प्यारी आँखों में सहमापन और सूनापन बढ़ गया।
अपने घर में ही उसकी आत्मा तक लहूलुहान हो गई। दरिंदा बाहर का न था।
हिरणी/अनिता रश्मि