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हिरणी/अनिता रश्मि

जंगल से बाहर आते ही कोमल, मासूम, खूबसूरत आँखोंवाली हिरणी शिकारियों से घिर गई। भागने की कोशिश करती। और घिर जाती। उसने अपने अंदर की ताकत को जगाया। शिकारियों को अपने सींग से घायल कर कुलांचें मारती उनके चंगुल से नौ दो ग्यारह!
जंगल में वापस आकर सुस्ताने लगी। बैठ गई। अभी भी आँखों में भय के डोरे देखे जा सकते थे। कहीं मन में विश्वास और बच जाने का भरोसा भी अँखुआया।
लेकिन कुछ भी समझने से पूर्व हिरणी चौकड़ी भरना भूल गई। उसकी प्यारी आँखों में सहमापन और सूनापन बढ़ गया।
अपने घर में ही उसकी आत्मा तक लहूलुहान हो गई। दरिंदा बाहर का न था।

लेखक

  • अनिता रश्मि मूलतः कथाकार। दो उपन्यास सहित चौदह किताबें। चार सौ से अधिक विविधवर्णी रचनाएँ प्रमुख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। अद्यतन : हंस सत्ता विमर्श और दलित विशेषांक के पुस्तक रूप में एक कहानी "मिरग मरीचा" परिकथा द्वारा सत्ताईस कहानियां पुस्तक में कहानी "संकल्प" "सरई के फूल", "हवा का झोंका थी वह" कथा संग्रह, "रास्ते बंद नहीं होते" लघुकथा संग्रह। संपादन: डायमंड बुक्स कथामाला के अंतर्गत झारखंड की 21 नारी मन की कहानियां। अनेक प्रतिष्ठित सम्मान, पुरस्कार। इस वर्ष पांच सम्मान। शोध में रचनाएं शामिल। संपर्क : 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002

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