बाँधकर बेतरा में
अपने छउआ-पुता को
ये जो शहर की छाती पर
सँवारने शहर को घूम रही हैं
एक माँ भी हैं
बच्चा कब छाती पर,
कब पीठ से बँधे बेतरा में समा
कंगारू बन जाएगा
कह सकते नहीं,
ईंट भट्ठों, भवनों सहित सारे बाजार
सड़क-गली में छा गईं ये
श्रम का अद्भुत ईमानदार प्रतीक बन
पीठ पर बँधे अपने मुन्ने-मुन्नी के संग
नन्हां-मुन्ना सा बेतरा
पहचान है इनकी
खेत-खलिहान, पोखर-अहरा
नदी-तालाब, सागर
गोहाल-बथान, पगडंडी
कहीं भी मिल जाएँगी ये
और इनका बेतरा
क्योंकि
अपने बेतरा में ये सिर्फ
वर्त्तमान ही नहीं
भविष्य भी ढोती हैं।
* बेतरा = बच्चे को पीठ पर बाँधना
बेतरा/अनिता रश्मि