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ताखे पर दीया/अनिता रश्मि

चलो पूरी दुनिया में
दीया जला आएँ
उम्मीद का
प्रेम की बाती को
मन के तेल में
डुबोकर
इससे पूर्व कि
हो जाए देर
जला आएँ दीया
वहाँ ओसारे पर,
छोटे से ताखे पर भी
जो खुलती हुई
बाहरी दीवार पर बना है
या फिर
उस दालान पर
सड़क के ठीक किनारे,
जहाँ से गुजरेंगे कई कामगार
स्त्री-पुरुष, बच्चे
एक अदद दिन को
अपने अथक श्रम से
भर दिन खुशनुमा बनाकर।
और रखना है वहाँ भी एक दीप
जहाँ से छले जाते हैं मन,
दीपदान तो
हर लेते मन के हर कलुष
तो चलो आँगन, तुलसी,
पूजागृह के बाहर भी
देहरी पर रख आएँ दीप
क्योंकि आ चुका है
वह समय बेईमान
अपनों को
और अपने को
खो देने का।

लेखक

  • अनिता रश्मि मूलतः कथाकार। दो उपन्यास सहित चौदह किताबें। चार सौ से अधिक विविधवर्णी रचनाएँ प्रमुख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। अद्यतन : हंस सत्ता विमर्श और दलित विशेषांक के पुस्तक रूप में एक कहानी "मिरग मरीचा" परिकथा द्वारा सत्ताईस कहानियां पुस्तक में कहानी "संकल्प" "सरई के फूल", "हवा का झोंका थी वह" कथा संग्रह, "रास्ते बंद नहीं होते" लघुकथा संग्रह। संपादन: डायमंड बुक्स कथामाला के अंतर्गत झारखंड की 21 नारी मन की कहानियां। अनेक प्रतिष्ठित सम्मान, पुरस्कार। इस वर्ष पांच सम्मान। शोध में रचनाएं शामिल। संपर्क : 1 सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, कुसई, डोरंडा, राँची, झारखण्ड -834002

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