चलो पूरी दुनिया में
दीया जला आएँ
उम्मीद का
प्रेम की बाती को
मन के तेल में
डुबोकर
इससे पूर्व कि
हो जाए देर
जला आएँ दीया
वहाँ ओसारे पर,
छोटे से ताखे पर भी
जो खुलती हुई
बाहरी दीवार पर बना है
या फिर
उस दालान पर
सड़क के ठीक किनारे,
जहाँ से गुजरेंगे कई कामगार
स्त्री-पुरुष, बच्चे
एक अदद दिन को
अपने अथक श्रम से
भर दिन खुशनुमा बनाकर।
और रखना है वहाँ भी एक दीप
जहाँ से छले जाते हैं मन,
दीपदान तो
हर लेते मन के हर कलुष
तो चलो आँगन, तुलसी,
पूजागृह के बाहर भी
देहरी पर रख आएँ दीप
क्योंकि आ चुका है
वह समय बेईमान
अपनों को
और अपने को
खो देने का।
ताखे पर दीया/अनिता रश्मि