सभी पुरुष ..
प्रवासी नहीं होते
लेकिन सभी स्त्रियाँ
होती हैं प्रवासी
छोड़ जातीं हैं
अपनी मिट्टी
अपने लोग
अपना गाँव- जवार
लहलहाते खेत- खलिहान
पोखर,अमराईयां, झूले
बचपन की सखियाँ
घर के आंगन में दबाये
कुछ गिलट की अशर्फियां
तुलसी चौरे पर
छोड़ी हुई आस्था
जनेऊ वाले पत्थर
मौन महादेव
भोर का सूर्योदय
संध्या का सूर्यास्त
परिवार के लिए
मूक समर्पण
करुणा की मूर्ति
अपने हिस्से की रोटी
हंसी- खुशी, नींद- चैन
सब कुछ त्यागना ही
उसकी नियति है
धीरे- धीरे हो जाती हैं
मोह- माया से परे
निर्विकार, स्थितप्रज्ञ
विमुक्त, आसक्तिविहीन..
लेकिन..
उन्हें तथागत की उपाधि
क्यों नहीं मिलती
क्यों नहीं हो पातीं
वे बुद्ध..
क्या इसमें भी है
कोई अनसुलझा रहस्य.
तथागत/डॉ. शिप्रा मिश्रा