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तथागत/डॉ. शिप्रा मिश्रा

सभी पुरुष ..
प्रवासी नहीं होते
लेकिन सभी स्त्रियाँ
होती हैं प्रवासी
छोड़ जातीं हैं
अपनी मिट्टी
अपने लोग
अपना गाँव- जवार
लहलहाते खेत- खलिहान
पोखर,अमराईयां, झूले
बचपन की सखियाँ
घर के आंगन में दबाये
कुछ गिलट की अशर्फियां
तुलसी चौरे पर
छोड़ी हुई आस्था
जनेऊ वाले पत्थर
मौन महादेव
भोर का सूर्योदय
संध्या का सूर्यास्त
परिवार के लिए
मूक समर्पण
करुणा की मूर्ति
अपने हिस्से की रोटी
हंसी- खुशी, नींद- चैन
सब कुछ त्यागना ही
उसकी नियति है
धीरे- धीरे हो जाती हैं
मोह- माया से परे
निर्विकार, स्थितप्रज्ञ
विमुक्त, आसक्तिविहीन..
लेकिन..
उन्हें तथागत की उपाधि
क्यों नहीं मिलती
क्यों नहीं हो पातीं
वे बुद्ध..
क्या इसमें भी है
कोई अनसुलझा रहस्य.

लेखक

  • डॉ. शिप्रा मिश्रा शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन माता- पिता- डॉ सुशीला ओझा एवं डॉ बलराम मिश्रा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लगभग 150 से अधिक पत्र- पत्रिकाओं में हिन्दी और भोजपुरी की लगभग 700 से अधिक रचनाओं का निरंतर प्रकाशन लगभग 100 से अधिक गोष्ठियों में शामिल , 3 पुस्तकें प्रकाशित एवं 4 प्रकाशन के क्रम में, साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा 100 से अधिक सम्मान प्राप्त

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