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माँ/दया शर्मा

चूल्हे पे खाना बनाती थी,
भर पेट सबको खिलाती थी ,
कभी स्वयं भूखी रह जाती थी ।
अपना दुख-दर्द छुपाती थी
पर संस्कार का दीप जलाती थी,
वो माँ हमारी कहलाती थी ।
पैसों की रहती तंगी थी ,
पापा के काम में मंदी थी ।
माँ शिकवा न कभी करती थी,
थोड़े  में  गुजर कर लेती थी।
संयम का सबक सिखाती थी ।
वो माँ हमारी कहलाती थी ।
घर ही उसका संसार था ,
किसी और चीज का न मलाल था ।
बच्चों की हँसी में खुश हो जाती थी,
अपनी दुनिया उसी मे पा जाती थी ।
अच्छे-बुरे  का फ़र्क समझाती  थी,
वो माँ हमारी कहलाती थी।
चूल्हे के उठते धूएं से
आँसू  को छुपा जाती थी,
नज़र धुंधली होती गई ,
पर नज़रिया  न मिटा पाती थी।
ज्ञान की जोत जलाती थी
वो माँ हमारी कहलाती थी ।
अक्षरों को न समझ पाती थी
पर दुनियादारी समझ मे आती थी ।
जीवन -पथ पर राह दिखाती  थी,
वो माँ हमारी कहलाती थी ।

लेखक

  • दया शर्मा जन्म स्थल- पंजाब कर्मस्थल - इम्फाल (मणिपुर) में मैं पली बढ़ी,शिक्षा ग्रहण की और कुछ समय तक इम्फाल AIR में casual announcer के तौर पर कार्यरत रही । शादी के बाद Shillong ही मेरा कर्मस्थल बना । शिक्षा-स्नातक (B.A.) रुचि- लेखन (कविताएं , कहानियाँ, आलेख आदि)स॔गीत , अनेक गृहकार्यों में रूचि, समाजिक संस्थाओं में गतिविधि । प्रकाशन एवम् उपलब्धियां- अनेक कविताएं ,कहानियाँ व आलेख अखबार एवम् पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित । साझा संकलन पुस्तकों में कहानियाँ , कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन एवम् रेडियो स्टेशन पर समय-समय पर कहानी कविताएं, व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देना। उपलब्धियां- द्वितीय अखिल भारतीय सारस्वत सम्मान समारोह में 'काव्य भूषण' से सम्मानित। पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी डाॅ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान से सम्मानित। Shubham Charitable Association से Certificate Of Appreciation से नवाजा गया। शहर समता विचार मंच (प्रयागराज) से एकल सुन्दर काव्य पाठ के लिए दो बार सम्मानित किया गया इसके अलावा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं।

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