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वाणी/दया शर्मा

वाणी की महिमा  अपरम्पार है  ।
इसका अपना  अथाह संसार है।
वाणी  दिलों में  चाहत भरती है।
कभी ये ही दिलों  को आहत करती है
वाणी  से रिश्ते संवरते हैं ।
कड़वे बोलों  से ये बिखरते  हैं।
मीठी वाणी  लोगों  में  मान बढाती  ।
दुरुपयोग हो वाणी का तो ये समाज में  शान घटाती ।
शब्दों को पहले  तोलो तुम
फिर  अपना  मुँह  खोलो तुम।
शब्दों  से ज्यादा  खेलो नही
बिना  सोचे  कुछ बोलो नही  ।
वाणी की भी तेज धार  होती हैं ।
दिल में  लग जाए तो सीने के पार होती है  ।
निकला तरकश बाण में  वापस नहीं  आता।
उसी तरह जो बोल  दिया  वो लौट कर  नहीं आता  ।

लेखक

  • दया शर्मा जन्म स्थल- पंजाब कर्मस्थल - इम्फाल (मणिपुर) में मैं पली बढ़ी,शिक्षा ग्रहण की और कुछ समय तक इम्फाल AIR में casual announcer के तौर पर कार्यरत रही । शादी के बाद Shillong ही मेरा कर्मस्थल बना । शिक्षा-स्नातक (B.A.) रुचि- लेखन (कविताएं , कहानियाँ, आलेख आदि)स॔गीत , अनेक गृहकार्यों में रूचि, समाजिक संस्थाओं में गतिविधि । प्रकाशन एवम् उपलब्धियां- अनेक कविताएं ,कहानियाँ व आलेख अखबार एवम् पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित । साझा संकलन पुस्तकों में कहानियाँ , कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन एवम् रेडियो स्टेशन पर समय-समय पर कहानी कविताएं, व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देना। उपलब्धियां- द्वितीय अखिल भारतीय सारस्वत सम्मान समारोह में 'काव्य भूषण' से सम्मानित। पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी डाॅ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान से सम्मानित। Shubham Charitable Association से Certificate Of Appreciation से नवाजा गया। शहर समता विचार मंच (प्रयागराज) से एकल सुन्दर काव्य पाठ के लिए दो बार सम्मानित किया गया इसके अलावा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं।

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