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वक्त/दया शर्मा

वक्त  जो बीत  जाता है
वापस वो आता नहीं ।
इन्तजार करते हम वक्त  का,
वक्त  करता हमारा नहीं।
आज अगर समय मेरा  है
तो कल तुम्हारा होगा
अगर ये मेहरबां है तुम पर
तो रोशन तेरा सितारा होगा।
वक्त  को कौन जान पाया है
कौन इसे बाँध पाया है।
इसने कभी राजा को रंक
कभी रंक को राजा बनाया है।
जो करना है आज में  कर लो
कल को किसने जाना है।
समझे हैं जो वक्त  की कीमत
जीवन उसने पहचाना है।
काश! वो गुजरे सुहाने पल
फिर से हमें  मिल पाते
जी लेते हसीं लम्हों को फिर से
कभी  हाथ से न जाने पाते ।
पर ये समय है मेरे  ए दोस्त!
गया तो फिर  न आएगा।
कितना  भी हम इसे  पुकारें
सद़ा ये सुन न पाएगा  ।
समय  की जो कद्र  करते
सुअवसर  उनके  साथ हैं ।
जो अनदेखी वक्त की  करते
फिर  मलते हाथ हैं।

लेखक

  • दया शर्मा जन्म स्थल- पंजाब कर्मस्थल - इम्फाल (मणिपुर) में मैं पली बढ़ी,शिक्षा ग्रहण की और कुछ समय तक इम्फाल AIR में casual announcer के तौर पर कार्यरत रही । शादी के बाद Shillong ही मेरा कर्मस्थल बना । शिक्षा-स्नातक (B.A.) रुचि- लेखन (कविताएं , कहानियाँ, आलेख आदि)स॔गीत , अनेक गृहकार्यों में रूचि, समाजिक संस्थाओं में गतिविधि । प्रकाशन एवम् उपलब्धियां- अनेक कविताएं ,कहानियाँ व आलेख अखबार एवम् पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित । साझा संकलन पुस्तकों में कहानियाँ , कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन एवम् रेडियो स्टेशन पर समय-समय पर कहानी कविताएं, व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देना। उपलब्धियां- द्वितीय अखिल भारतीय सारस्वत सम्मान समारोह में 'काव्य भूषण' से सम्मानित। पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी डाॅ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान से सम्मानित। Shubham Charitable Association से Certificate Of Appreciation से नवाजा गया। शहर समता विचार मंच (प्रयागराज) से एकल सुन्दर काव्य पाठ के लिए दो बार सम्मानित किया गया इसके अलावा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं।

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