बचपन के वो हसीन पल
क्षण क्षण क्यों जाते हैं ढल।
ऐ दिल ! फिर वहीं पे चल
वो मौसम क्यों गया बदल ।
कभी हँसना, कभी रोना
कभी रूँठना तो कभी मनाना ।
वो पेड़ों पे चढ कर गिरना
चोरी से फलों का खाना।
वो कागज की नाव बनाना
कभी हवाई जहाज चलाना
खो खो ,कब्बडी का खेला
लगता था हम बच्चों का मेला ।
न भूख प्यास की चिन्ता ,
न किसी चीज का गम ।
रहते मस्त सदा हमसाथियों के संग ।
छोटी छोटी चीज़ों में हमेशा
मन जाता था तब हमारा रम ।
काश ! वो दिन फिर मिल पाते
खुशियों के फूल फिर खिल जाते ।
ज़िंदगी को सरस ही पाते
उलझनों से तनिक न घबराते ।
चलो, लौट चलें फिर उस बचपन में
ईर्ष्या- द्वेष न रहें जहां मन में।
भावना अच्छी हो , मन सच्चा हो
उम्र चाहे जो भी हो पर मन बच्चा हो ।
बचपन/दया शर्मा