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प्रकृति/दया शर्मा

प्रकृति करती ज्यों तो किसी का तिरस्कार  नहीं
अत्याचार होता जब मानव का उस पर
प्रतिशोध में  करती उसका वहिष्कार  यहीं ।
काश ! मनुष्य  तुम समझ  पाते
बदौलत जिसके तुम  स्वस्थ्य  जीवन जीते,
दमन  उसी का करने  पर तुलते
क्यों दुःख दर्द के  आँसू पीते
पेड़ पौधे  जो शुद्ध  हवा  देते
उन्हीं को काट कर कैसा जीवन जीते
पहाडों को काट कर समतल बनाते ।
वातावरण  की नमी को ही  सुखाते  ।
दुरूपयोग जल का तुम करते।
 कारखानों के उठते शोर से,
गाड़ियों के प्रदूषण से,
ऊँची ऊँची इमारतों  से,
धूप- हवा  को छीनते तुम जाते ।
कब तक सहती जुल्म प्रकृति
 उसने  आखिर  समझा ही दिया ।
कहीं सुनामी , कहीं सूखा,
कहीं  भूकम्प तो कहीं जलजले का जलवा   दिखला  दिया।
अब भी सम्भल जा ए मानव
 पीढ़ी अगली का क्या  हश्र  होगा !
क्या विरासत में  देगा उनको
कैसे  उनका बसर होगा !

लेखक

  • दया शर्मा जन्म स्थल- पंजाब कर्मस्थल - इम्फाल (मणिपुर) में मैं पली बढ़ी,शिक्षा ग्रहण की और कुछ समय तक इम्फाल AIR में casual announcer के तौर पर कार्यरत रही । शादी के बाद Shillong ही मेरा कर्मस्थल बना । शिक्षा-स्नातक (B.A.) रुचि- लेखन (कविताएं , कहानियाँ, आलेख आदि)स॔गीत , अनेक गृहकार्यों में रूचि, समाजिक संस्थाओं में गतिविधि । प्रकाशन एवम् उपलब्धियां- अनेक कविताएं ,कहानियाँ व आलेख अखबार एवम् पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित । साझा संकलन पुस्तकों में कहानियाँ , कविताएं एवं लघुकथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन एवम् रेडियो स्टेशन पर समय-समय पर कहानी कविताएं, व विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देना। उपलब्धियां- द्वितीय अखिल भारतीय सारस्वत सम्मान समारोह में 'काव्य भूषण' से सम्मानित। पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी डाॅ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान से सम्मानित। Shubham Charitable Association से Certificate Of Appreciation से नवाजा गया। शहर समता विचार मंच (प्रयागराज) से एकल सुन्दर काव्य पाठ के लिए दो बार सम्मानित किया गया इसके अलावा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं।

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