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पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं/दुष्यंत कुमार

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं

बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहीं

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं

सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

लेखक

  • दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा गाँव में 1933 ई में हुआ। इनके बचपन का नाम दुष्यंत नारायण था। प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया तथा यहीं से इनका साहित्यिक जीवन आरंभ हुआ। वे वहाँ की साहित्यिक संस्था परिमल की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और नए पते जैसे महत्वपूर्ण पत्र के साथ भी जुड़े रहे। उन्होंने आकाशवाणी और मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में काम किया। अल्पायु में इनका निधन 1975 ई. में हो गया। रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- काव्य-सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप, जलते हुए वन का वसंत। गीति-नाट्य-एक कंठ विषपायी। उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दोहरी जिंदगी। साहित्यिक विशेषताएँ-दुष्यंत कुमार की साहित्यिक उपलब्धियाँ अद्भुत हैं। इन्होंने हिंदी में गजल विधा को प्रतिष्ठित किया। इनके कई शेर साहित्यिक एवं राजनीतिक जमावड़ों में लोकोक्तियों की तरह दुहराए जाते हैं। साहित्यिक गुणवत्ता से समझौता न करते हुए भी इन्होंने लोकप्रियता के नए प्रतिमान कायम किए। गजल के बारे में वे लिखते हैं- “मैं स्वीकार करता हूँ कि गजल को किसी की भूमिका की जरूरत नहीं होती. मैं प्रतिबद्ध कवि हूँ. यह प्रतिबद्धता किसी पार्टी से नहीं, आज के मनुष्य से है और मैं जिस आदमी के लिए लिखता हूँ. यह भी चाहता हूँ कि वह आदमी उसे पढ़े और समझे।” इनकी गजलों में तत्सम शब्दों के साथ उर्दू के शब्दों का काफी प्रयोग किया है; जैसेमेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही। हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। ‘एक कंठ विषपायी’ शीर्षक गीतिनाट्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण व बहुप्रशंसित कृति है।

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