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निगाहें आसमान की ओर/डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

जेठ मास की अंतिम सप्ताह तक बारिश न होने के कारण किसान से लेकर महानगर वासियों तक की निगाहें आसमान की ओर है। किसान खेत में बीज बो चुके हैं। वे बार बार आस भरी निगाहों से आसमान की ओर देखते हुए विनती करते हैं, “हे भगवान! अब तो वर्षो। कब तक बीज को धरती मां सही सलामत रखेंगी। यदि तू नहीं बर्षा तो हम आत्मा हत्या करने पर विवश हो जायेंगे। क्योंकि घर में न बीज खरीदने के लिए पैसा ही है और न महाजन उधार में बीज देने को तैयार है। हे आसमान के सफेद बादल, तू काले काले बादल में परिवर्तित होकर, उमड़ना घुमड़ना शुरू कर, गर्जन करते हुए खूब बर्ष। हे जीवन के आधार।”
शहरी समाज जो बारिश होने से कामकाज में रूकावट समझते थे। वह आज किसान की तरह निगाहें आसमान की ओर करके बार बार देख रहे हैं। क्योंकि शहर के अधिकांश घरों और बड़े बड़े मंजिलों में। उन मंजिलों में जहां एक एक गांव बसा हुआ है। जेठ मास के आते ही बोरिंग सूख गया। पहले सोसायटी वाले पैसा के घमंड से चूर होकर बोरिंग पर बोरिंग खोदवाने लगे। पर एक के बाद एक बोरिंग सूखता गया। वे भी विवश होकर आसमान की ओर बार बार आस भरी निगाहों से ताक रहे हैं। कुछेक मकान मालिक या सोसायटी वाले तो रेंटर को दो बाल्टी पानी देखकर कहते हैं, रहना है तो इसी में काम चलाए। और मानसून की इंतजार कीजिए। वरना खाली करके चले जायें।”
आदमी अपनी सुविधानुसार पानी की व्यवस्था करते हैं। जिस सोसायटी या मकान मालिक टंकर मांगवाते हैं वहां रेंटन की ज्यादा परेशानी नहीं होती है। पर जिस सोसायटी या मकान मालिक पानी की कुछ व्यवस्था नहीं करते हैं। वे खुद आसमान को बार बार देखते हुए मन ही मन विनती करते हैं, हे बादल अब तो बर्षो!
प्रतिदिन बारिश का मौसम बनता है पर बारिश होती नहीं है। आदमी को पीने का पानी खरीदने पर भी लाईन में घंटों इंतज़ार करने पर बहुत मुश्किल से मिलता है। आदमी आधी रात से पानी का इंतजाम करते हैं।

लेखक

  • डॉ. मृत्युंजय कोईरी शिक्षा; स्नातकोत्तर हिन्दी पीएचडी0 कहानी संग्रह-मेंड़, राजेश की बैल, एक बोझा धान सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

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