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तुम मेरी प्रतीक्षा मत करो!/डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

मालिया इकलौता पुत्र है। घर में माँ-बाबा वृद्ध हो चुके हैं। वे खेती और मजदूरी करके अपना पेट चला रहे हैं। पुत्र को केवल चावल के अलावे कुछ नहीं दे पाते हैं। मालिया शाम चार बजे से रात के आठ बजे तक वान-टू के बच्चे को ट्यूशन पढ़ाता है। ट्यूशन के पैसे से परीक्षा फाॅर्म भरता है, किताब-काॅपी खरीदता है, रूम रेंट देता है और सब्जी आदि खरीदता है। सुबह एक बार खाना खाकर लाइब्रेरी चला जाता है। फिर एक ही बार रात को खाता है। तीस-इक्तीस वर्ष के मालिया का हुलिया देखकर ऐसा लगता है मानो साठ साल का बूढ़ा है। सिर का बाल आधा से अधिक झड़ चुका है और शेष बाल सफेद हो चुका है। चेहरा झुर्रियों की झोली बन गया है।

मालिया की प्रेमिका नीलिमा इंटरमीडिएट से इनकी नौकरी की प्रतीक्षा कर रही है। जब इंटरमीडिएट उत्तीर्ण की थी। तभी नीलिमा के बाबा शादी देने वाले थे। पर नीलिमा मालिया से प्रेम करती है। इसीलिए शादी को टालने के वास्ते बाबा से बी.ए. की पढ़ाई करने की जिद की। जब नीलिमा बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। तब तक मालिया को नौकरी नहीं मिली। नीलिमा पुनः एक बार बाबा से एम.ए. की पढ़ाई करने की जिद की। पुत्री स्नेह में विवश बाबा ने आज्ञा दे दी। किंतु अब नीलिमा विवश है। क्योंकि एम.ए. भी उत्तीर्ण हो चुकी है। अब बाबा के सामने कोई जिद चलने वाली नहीं है। गाँव में इनकी उम्र की सभी लड़कियों की शादी हो चुकी है। किसी-किसी का बेटा-बेटी पाँच-छह बरस के हो गये हैं। इधर नीलिमा के प्रेमी मालिया, अब तक कोई छोटी-सी नौकरी भी जुगाड़ नहीं कर पायी है।

मालिया दीपावली में घर चला जाता है। नीलिमा एम.ए. की फाइनल परीक्षा देने के बाद से घर में रहती है। मालिया सुबह साइकिल पकड़कर प्रेमिका नीलिमा से मिलने चला जाता है। नीलिमा रोती हुई मालिया से कहती है, ‘‘बाबा ने लड़के वाले को दो दिन बाद आने की ज़बान दे चुके हैं। तुम कब नौकरी करोगे? और शादी कब करोगे? या जिंदगी भर केवल मिलते ही रहोगे?’’

‘‘ओ मेरी जानू! तू रो क्यों रही हो?’’ मालिया

‘‘रोऊँ नहीं तो मैं क्या करूँ?’’

‘‘तू मेरी प्रतीक्षा मत करो! क्योंकि तू जानती ही हो। जब तब नौकरी नहीं, तब तक शादी नहीं। ये मेरी कसम है।’’

‘‘मैं किसी दूसरे से कैसे शादी कर सकती हूँ? तुमको अपना पति जो मान चुकी हूँ। और तू मेरे साथ जीने मरने की कसम खाई थी, उसका क्या?’’

‘‘हाँ, मैंने कसम खाई थी। पर मेरी स्थिति तो देख, यदि शादी करता हूँ तो तैयारी-उयारी छोड़कर गाँव में मजदूरी करना पड़ेगा या राँची में हम दोनों को किसी दुकान में काम करना पड़ेगा।’’

‘‘तुम शादी नहीं करोगे तो फिर बाबा मुझे किसी दूसरे लड़के से शादी करने पर मजबूर कर देंगे।’’

‘‘तू जब पहली बार शादी करने की बात की थी। तब भी मैं यही कहा था, नौकरी लगने के बाद ही शादी करूँगा।’’

‘‘हाँ, पर मुझे क्या पता था। तुमको इतने वर्षों के बाद भी नौकरी नहीं मिलेगी? और तुम ने ही तो पाँच साल पहले कहा था, दो-तीन विभाग में नौकरी लगने वाली है। उसका क्या?’’

‘‘तुमको तो पता है। मेरे पास रिश्वत देने की सामर्थ्य है, न सोर्स-सिफारिश ही है और न मैं नेता-मंत्री का बेटा हूं। मैं एक गरीब किसान का बेटा हूँ। मेरे बाबा जमीन बेच कर बी.एड. करने का पैसा दिया था। मैं अपनी जमीन की कीमत अदा करके रहूँगा। चाहे मुझे आजीवन कुँवारा ही रहना क्यों न पड़े?’’

‘‘तुम तो कुँवारा भी रह सकते हो। लेकिन मुझे तो मेरे बाबा कुँवारी रहने नहीं देंगे।’’

‘‘मैं क्या करूँ? यदि मैं मेहनत नहीं करता, तब तू कह सकती थी। मेरे साथ शादी नहीं करने का बहाना बना रहो हो।’’

‘‘मैं मानती हूँ। तुम बहुत मेहनत करते हो। एक दिन जरूर तुमको बहुत अच्छी नौकरी मिलेगी।’’

‘‘पता नहीं, कभी नौकरी मिलेगी भी या नहीं।’’

‘‘बहरहाल तुम मेरे बारे सोचो। मैं तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊँगी?’’

‘‘मैं सोचा था, कोई अच्छी नौकरी मिल जाते ही शादी कर लूँगा। लेकिन आज तक कोई थर्ड या फोर्थ ग्रेड की नौकरी भी नहीं मिल पायी। इसीलिए, मैं कह रहा हूँ। तू मेरी प्रतीक्षा मत करो! तुम्हारे बाबा जहाँ बोल रहे हैं। वहाँ खुशी-खुशी शादी कर लो।’’

‘‘नहीं, नहीं………।’’ बोलती नीलिमा रोने लगी।

‘‘मैं, तुमको हद से ज्यादा प्यार करता हूँ। पर मैं क्या करूँ? मेरी स्थिति ही ऐसी है।’’

‘‘मैं, तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह पाऊँगी।’’ बोलती नीलिमा बिलखने लगी।

‘‘नीलिमा रो मत! मानो ईश्वर ने हमें इस जन्म में प्रेमी और प्रेमिका तक ही बनाया था। पति-पत्नी नहीं।’’ कहता मालिया आँसू पोंछता हुआ साइकिल पकड़कर घर की राह ली।

लेखक

  • डॉ. मृत्युंजय कोईरी शिक्षा; स्नातकोत्तर हिन्दी पीएचडी0 कहानी संग्रह-मेंड़, राजेश की बैल, एक बोझा धान सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

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