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चिंगारी बन गई है आग/देवेंद्र जेठवानी

चिंगारी बन गई है आग, फ़िर भी कहीं कोई धुँआ ही नहीं है,
लगी है ये आग कैसी कि, उठा कहीं कोई धुँआ ही नहीं है,
जलकर खाक हो गई मिल्क़ियत सारी, बचा कुछ भी नहीं,
फ़िर भी कुछ रायचंदों की मानें तो ख़ास कुछ हुआ ही नहीं है
पानी की प्यास बुझाने को तो, मौज़ूद हैं कई ताल- तरोवर,
जो प्यास बुझाये लालच की, ऐसा तो कोई कुआँ ही नहीं है,
ग़र तुम माँग लेते कुछ और तो, बेशक़ बेहिसाब दे देते,
माँगी है दुआ, और सच कहूँ तो देने को दुआ ही नहीं है,

लेखक

  • देवेंद्र जेठवानी जन्मतिथि :- 14/09/1992 जन्म स्थान :- भोपाल (म.प्र.) निवास स्थान :- भोपाल (म.प्र.) शिक्षा :- B.Com Graduation M.B.A. (marketing, finance) मास्टर्स रूची :- कविता, ग़ज़ल, शेर, शायरी पेशा :- प्राइवेट कर्मचारी ( प्राइवेट बैंक में कार्यरत)

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