चिंगारी बन गई है आग, फ़िर भी कहीं कोई धुँआ ही नहीं है,
लगी है ये आग कैसी कि, उठा कहीं कोई धुँआ ही नहीं है,
जलकर खाक हो गई मिल्क़ियत सारी, बचा कुछ भी नहीं,
फ़िर भी कुछ रायचंदों की मानें तो ख़ास कुछ हुआ ही नहीं है
पानी की प्यास बुझाने को तो, मौज़ूद हैं कई ताल- तरोवर,
जो प्यास बुझाये लालच की, ऐसा तो कोई कुआँ ही नहीं है,
ग़र तुम माँग लेते कुछ और तो, बेशक़ बेहिसाब दे देते,
माँगी है दुआ, और सच कहूँ तो देने को दुआ ही नहीं है,
चिंगारी बन गई है आग/देवेंद्र जेठवानी